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________________ शंका-समाधान ** ************************************ तिरस्कार ही हुवा। तब आपने येन केन प्रकारेण इस समाज से अपने निरादर एवं अपमान का बदला लेने की ठान ली। बस जा घुसे मूर्तिपूजक समाज में और वहाँ रह कर अपने ज्ञान एवं आश्रयदाता को लगे पेट भर कोसने। स्वामीजी ने वहाँ रह कर भी अपना चरित्र किस प्रकार कलङ्कित किया है, इस विषयक वर्णन एक स्वतंत्र ट्रेक्ट द्वारा किया जा सकता है, परन्तु यहां तो केवल इतना ही कहना है कि श्री ज्ञानसुन्दरजी ने मुख-वस्त्रिका विषयक जो जो कुतर्के उठाई हैं वे सब निरर्थक होकर, इनकी चित्तवृत्ति को स्फुट कर रही है। सुन्दरजी ने बाल-ब्रह्मचारी, शास्त्रोद्धारक स्वर्गीय पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज को अपने पोथे में प्रायः प्रत्येक स्थान पर 'अमोलखर्षिजी' लिखकर न जाने किस वैर का बदला चुकाया है। आपने साधुमार्गीय समाज को कितने हल्के शब्दों से सम्बोधन किया है! यह तो पाठक स्वयं अनुभव कर सकते हैं। इसलिये हमें विषयान्तर नहीं करते हुए ज्ञानसुन्दरजी के मुख-वस्त्रिका विषयक फैलाए हुए भ्रम जाल का ही छेदन करना है। अतएव निम्न लिखित शङ्का समाधान रूप में पाठकों की सेवा में रखते हैं। पाठक धैर्यपूर्वक अवलोकन एवं मनन करें। (१) शंका - मृगावती रानी ने गौतमस्वामी को कहा कि - आप मुख-वस्त्रिका मुख पर बाँधकर ही मेरे पुत्र को देखने चलें, ऐसा विपाक सूत्र के मूल पाठ में कहा है, इससे सिद्ध होता है कि-उस वक्त गौतमस्वामी के मुख पर मुख-वस्त्रिका बन्धी हुई नहीं थी, किन्तु हाथ ही में थी। इससे मुख-वस्त्रिका हाथ में रखना कैसे प्रमाणित नहीं हो सकता? Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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