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________________ 'उत्तरार्द्ध" " शङ्का - समाधान" (१) जब किसी व्यक्ति का उसकी चरित्र हीनता के कारण समाज से तिरस्कार हो जाता है, तब वह व्यक्ति अपनी चरित्र - हीनता का उत्तरोत्तर पोषण करने के लिए (जो उस समाज में रह कर नहीं हो सकता) और उस समाज से अपने तिरस्कार का बदला लेने के लिए इतर समाज में मिल जाता है और उसमें रहकर अपना तिरस्कार करने वाली समाज को दिल खोलकर अच्छी तरह कोसता है । यदि उसमें शक्ति हो तो वह उस समाज को ही नष्ट करदे, ऐसी भावना रखता है । पाठक देखेंगे, कि आज एक हिन्दू किसी कारण से अपनी समाज से बहिष्कृत होकर मुस्लिम या ईसाई आदि समाज में जा घुसता है । तब वह हिन्दू समाज का ऐसा कट्टर दुश्मन हो जाता है कि जितने वे असली हिन्दू विरोधी भी नहीं होंगे । इसका मुख्य कारण अपने अपमान का बदला ही है, नतु अन्यः । ठीक इसी दूषित प्रवृत्ति को श्री ज्ञानसुन्दरजी ने भी पकड़ रक्खी है। आपके आचरणों की ख्याति से ही शुद्ध जैन समाज से आपको विदाई मिल गई । पुनः प्रविष्ठ होने की कोशिश करने पर भी कृतज्ञता (!) के वश मूल साधुमार्गी समाज में आप प्रविष्ठ नहीं हो सके। विज्ञ समाज में भी आपका आदर न होकर अनादर तथा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org 66.
SR No.003678
Book TitleMukhvastrika Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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