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काव्यात्मक सौन्दर्य :
लोक भाषा जब जन-जन में लोकप्रिय हो जाती है तथा उसकी शब्द सम्पदा बढ़ जाती है तब वह काव्य की भाषा बनने लगती है। प्राकृत भाषा को यह सौभाग्य दो तरह से प्राप्त है। प्राकृत में जो आगम ग्रंथ , व्याख्या-साहित्य , कथा एवं चरितग्रंथ आदि लिखे गये उनमें काव्यात्मक सौन्दर्य और मधुर रसात्मकता का समावेश है। काव्य की प्रायः सभी विधाओं- महाकाव्य , खण्डकाव्य , मुक्तककाव्य आदि को प्राकृत भाषा ने समृद्ध किया है। इस साहित्य ने प्राकृत भाषा को लम्बे समय तक प्रतिष्ठित रखा है । अशोक के शिलालेखों के लेखन-काल से आज तक इन अपने 2000 वर्षों के जीवन काल में प्राकृत भाषा ने अपने काव्यात्मक सौन्दर्य को निरन्तर बनाये रखा है। प्राकृत भाषा की इसी मधुरता और काव्यात्मकता का प्रभाव है कि भारतीय काव्यशास्त्रियों ने काव्य के अपने लक्षण- ग्रन्थों में प्राकृत की सैकड़ों गाथाओं के उद्धरण दिये हैं । अनेक सुभाषितों को उन्होंने इस बहाने सुरक्षित किया है ।
__भारतीय भाषाओं के आदिकाल की जन-भाषा से विकसित होकर प्राकृत स्वतंत्र रूप से विकास को प्राप्त हुई । बोलचाल और साहित्य के पद पर वह समान रूप से प्रतिष्ठित रही है। उसने देश की चिन्तनधारा , सदाचार और काव्य-जगत् को अनुप्राणित किया है , अतः प्राकृत भारतीय संस्कृति की संवाहक भाषा है । प्राकृत ने अपने को किसी घेरे में कैद नहीं किया। इसके पास जो था उसे वह जन-जन तक बिखेरती रही और जनसमुदाय में जो कुछ था उसे वह बिना हिचक ग्रहण करती रही । इस तरह प्राकृत भाषा सर्वग्राह्य और सार्वभौमिक भाषा है । प्राकृत के स्वरूप की ये कुछ ऐसी विशेषताएँ हैं, जो प्राचीन समय से आज तक लोक-मानस को प्रभावित करती रहीं हैं।
प्राकृत-अध्ययन का विकास एवं भविष्य
भारतीयविद्या के अन्तर्गत जिन विषयों का अध्ययन किया जाता है, उनमें अब प्राकृतविद्या भी अपना स्थान बनाने लग गयी है। प्राकृतविद्या वस्तुतः जैनविद्या का प्रमुख अंग है , क्योंकि प्राकृत का अधिकांश साहित्यिक जैन धर्म-दर्शन से सम्बन्ध रखता है , यद्यपि उसका काव्यात्मक एवं सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। प्राकृतविद्या के स्थान पर प्राकृत अध्ययन पद का प्रयोग कना अधिक व्यापक एवं सार्थक है। अतः देश-विदेश में विगत कुछ दशकों में प्राकृत अध्ययन की क्या प्रगति हुई हैं एवं अगले पचास वर्षों में इसके विकास की क्या सम्भावनाएं है, इसी पर संक्षेप में यहाँ कुछ विचार करना उचित होगा ।
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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