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का माध्यम भी यह भाषा रही है। अतः समग्र भारतीय चेतना का साक्षात्कार करने के लिए देशवासियों को प्राकृतभाषा को सीखना- समझना होगा । विद्वद्गण भी इस दिशा में पूर्ण यत्न करें तथा शैक्षणिक योजना की क्रमबद्ध रूपरेखा बनाकर उसके अनुपालन में लग जायें ; क्योंकि इस कार्य का मूल दायित्व उन्हीं का है।
अखिल भारतीय शौरसेनी प्राकृत काव्यगोष्ठी
शौरसेनी प्राकृत की राष्ट्रीय संस्था अखिल भारतीय शौरसेनी प्राकृत विद्वत्संसद ने श्री कुन्दकुन्द भारतीय, नई दिल्ली के तत्वाधान में · श्रुतपन्चमी ; प्राकृतभाषा दिवस के सुअवसर पर लगातार दूसरे वर्ष अखिल भारतीय शौरसेनी प्राकृत काव्यगोष्ठी का भव्य आयोजन किया। पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज एवं मुनिश्री कनकोज्जवलनंदि जी के पावन सान्निध्य में ज्येष्ठ शुक्ल पंचमी दिनांक 22 मई 96 बुधवार को आयोजित इस काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता सुविख्यात विचारक प्रो. (डॉ.) वाचस्पति उपाध्याय , कुलपति श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ , नई दिल्ली ने की ।
काव्यगोष्ठी के प्रारम्भ में कुमारी चन्दना जैन ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की एवं पं. बाहुबलि उपाध्ये ने मंगलाचरण स्वरूप शौरसेनी प्राकृत- निबद्ध दसणपाठ का सस्वर वाचन किया। तदुपरान्त आकाशवाणी नई दिल्ली के कार्यक्रम निदेशक श्री हरिचरण वर्मा पुरूदेव मंगल एवं श्रुतभक्ति ( अमृत झरै , झुरि-झुरि ) की संगीतमय प्रस्तुति सम्पूर्ण सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया । काव्यगोष्ठी में सर्वप्रथम डॉ. विद्यावती जैन आरा ( बिहार ), डॉ. उदयचन्द जैन, उदयपुर ( राज. ) , मुनिश्री कनकोज्जवलनंदि जी , प्रो. भागचन्द जैन भास्कर , डॉ. हरीराम आचार्य, जयपुर ( राज. ) , डॉ. रवीन्द्र नागर , डॉ. दामोदर शास्त्री, डॉ. प्रेम सुमन जैन , उदयपुर , डॉ. राजाराम जैन , आरा आदि प्राकृत विद्वान कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की ।
संस्कृत विद्यापीठ में प्राकृतभाषा विभाग का शुभारम्भ
श्री लालबहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ मानित विश्वविद्यालय नई दिल्ली 16 सत्र 1998-99 से प्राकृतभाषा के स्वतंत्र विभाग का शुभारम्भ केन्द्र सरकार की अनुमति से विधि सम्मत तरीके से हुआ है। इसकी स्थापना के पूर्व विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नियमावली के अनुसार प्रयोग के तौर पर प्राकृतभाषा के अंशकालीन पाठ्यक्रम ( प्रमाणपत्रीय एवं डिप्लोमा पाठ्यक्रम )
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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