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तीन वर्ष पूर्व सत्र 1996-97 से प्रारंभ किये गये थे । दो वर्षो में उनकी सक्रियता पाठ्यपुस्तकों के निर्माण, जनरुचि एवं सफल संचालन को दृष्टिगत रखते हुए पूरी रिपोर्ट के आधार पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग एवं केन्द्र सरकार ने इस विभाग की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की अपेक्षित संसाधन भी विद्यापीठ को प्रदान किये । प्राकृतभाषा विभाग में उपाचार्य रीडर पद पर डा. सुदीप जैन की नियुक्ति हुई है तथा व्याख्याता लेक्चरर पद पर डॉ. पं. जयकुमार उपाध्ये की नियुक्ति हुई है।
शौरसेनी प्राकृत विद्वत्संसद का गठन
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भारत की प्राचीनतम जनभाषा शौरसेनी प्राकृत विगत कुछ दिनों से विद्वत् जगत् में चर्चा की केन्द्र बनी तो एक उपयुक्त मंच की अनिवार्य आवश्यकता का अनुभव हुआ । फलस्वरूप 22 अप्रैल 95 को पूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के अमृत महोत्सव के प्रसंग में एक सारस्वत संस्था का गठन हुआ जिसका नामकरण हुआ- शौरसेनी प्राकृत विद्वत्संसद संसद की ग्यारह सदस्यीय प्रथम कार्यकारिणी इस प्रकार है- प्रो. डॉ. मण्डन मिश्र --अध्यक्ष प्रो. डॉ. राजाराम जैन कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. प्रेम सुमन जैन
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- प्रधान सचिव, डॉ. सुदीप जैन - सहसचिव तथा पं. बलभद्र जैन, नई दिल्ली, प्रो. डॉ. नथमल टाटिया लाडनूँ, प्रो. डॉ. देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच, प्रो डॉ. वाचस्पति उपाध्याय, नई दिल्ली, प्रो. लक्ष्मीनारायण तिवारी, दिल्ली, प्रो. डॉ भागचन्द जैन भास्कर नागपुर, डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी वाराणसी- सभी
सदस्यगण |
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काउन्सिल ऑफ जैन इन्स्टीट्यूट्स
सम्प्रदाय निरपेक्ष मात्र जैनत्व के सिद्धान्तों के प्रचार- प्रसार हेतु काउन्सिल ऑफ जैन इन्स्टीट्यूटस ( C JAIN ) की स्थापना हुई हैं जो अहमदाबाद में डॉ॰ सागरमल जैन, डॉ प्रेम सुमन जैन एवं डॉ. शेखर चन्द्र जैन के मार्गदर्शन में काम करेगी । इसका उद्देश्य विश्व में जैन रिसर्च के कार्य को अंजाम देना तथा आधुनिक संचार माध्यमों से पूरे विश्व के शोध केन्द्रों की रिसर्च की पूरी जानकारी इन्टरनेट पर उपलब्ध कराना है ।
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प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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