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भगवतीसूत्र के विभिन्न आयाम' विषय पर संगोष्ठी -
श्री अम्बा गुरू शोध संस्थान उदयपुर के तत्वाधान में पूज्य श्री सौभाग्यमुनि जी ' कुमुद ' के पावन सान्निध्य में 20 एवं 21 नवम्बर 1993 को मावली ( उदयपुर) में एक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गई । इस संगोष्ठी में अर्धमागधी आगम भगवतीसूत्र के विभिन्न आयाम विषय पर विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये ।
प्रकीर्णक साहित्य- विषय संगोष्ठी सम्पन्न
आगम अहिंसा समता एवं प्राकृत संस्थान , उदयपुर द्वारा आयोजित प्रकीर्णक साहित्य अध्ययन एवं समीक्षा विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी रविवार 3 अप्रैल 1994 को सम्पन्न हो गई । संगोष्ठी का उद्घाटन शनिवार 2 अप्रैल 1994 को जवाहर जैन सीनियर सैकण्डरी स्कूल के सभागार में हुआ। समारोह के अध्यक्ष मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. के. राय थे। उन्होंने कहा कि प्रकीर्णक ग्रन्थों का समाज में अधिकाधिक उपयोग हो तभी इस संगोष्ठी की सार्थकता है।
द्वितीय राष्ट्रीय शौरसेनी प्राकृत संगोष्ठी
भारत की राजधानी नई दिल्ली में श्रुतपन्चमी प्राकृतभाषा दिवस की पूर्वबेला में परमपूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज एवं मुनिश्री कनकोज्जवलनन्दि जी के पावन सान्निध्य में आयोजित द्वितीय राष्ट्रीय शौरसेनी प्राकृत संगोष्ठी अत्यन्त गरिमापूर्ण उल्लासमय वातावरण में सम्पन्न हुई । दिनांक 21 मई 1996 को आयोजित इस एकदिवसीय राष्ट्रीय शौरसेनी प्राकृत संगोष्ठी का कार्यक्रम अत्यन्त व्यस्त रहा । इसमें कुल चार सत्रों में लब्धख्यात विद्वानों/ विदुषियों ने अपने गवेषणापूर्ण शोधपत्रों का वाचन किया तथा समागत एवं स्थानीय विद्वानों की सार्थक परिचर्या से इसकी श्रीवृद्धि हुई ।
इस अवसर पर मंगल आशीर्वचन प्रदान करते हुए पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कहा कि सिन्धु- सभ्यता के समय में अर्थात् आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व प्राकृतभाषा ही इस देश की जनभाषा थी- यह तथ्य शोधकर्ताओं ने प्रमाणित कर दिया है तथा सम्राट अशोक एवं सम्राट खारबेल जैसे महाप्रतापी राजाओं ने इस भाषा में राजाज्ञा प्रदान की , जिनके शिलालेखीय प्रमाण आज भी देशभर में प्राप्त होते है। भास , कालिदास जैसे साहित्यिक कवियों तथा पुष्पदन्त- भूतवलि, कुन्दकुन्द जैसे महान् तपस्वी सन्तों के साहित्य
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प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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