SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य कुन्दकुन्द राष्ट्रीय संगोष्ठी आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्त्राब्दी समारोह के शुभावसर पर सरधना की जैन समाज ने परमपूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज एवं परमपूज्य मुनिवर 108 श्री वैराग्यसागर जी महाराज के ससंघ पावन सान्निध्य में आचार्य कुन्दकुन्द के अवदान को जन-जन तक पहुंचाने की पवित्र भावना से सरधना ( मेरठ) में 25-26 मार्च 1990 को एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया था । इस संगोष्ठी में देश के ख्याति- लब्ध मनीषियों ने भाग लेकर अपने अनुसंधानपरक आलेखों का वाचन किया । अहिंसा एवं अपरिग्रह पर दिल्ली में संगोष्ठी श्री कुन्दकुन्द भारती के सहयोग से श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ , मानित विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में दो दिवसीय संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। इसमें विचारणीय विषय , अहिंसा और अपरिग्रह था । दिनांक 5 जनवरी 1993 मंगलवार को पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज का बड़े उत्साह एवं श्रद्धा के साथ अभिनन्दन किया गया। संस्कृत काव्य में रचित अभिनन्दन का पठन सुप्रसिद्ध संस्कृत गीतकार एवं कवि डॉ. रमाकान्त शुक्ल ने किया । संगोष्ठी का उद्घाटन नवभारत टाइम्स के सम्पादक डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने किया । सभा की अध्यक्षता कुलपति डॉ. मण्डल मिश्र ने की। मुख्य अतिथि पं. नवल किशोर शर्मा राष्ट्रीय महासचिव , अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि सिक्यूलर का अनुवाद आचार्य श्री विद्यानन्द ने सम्प्रदाय निरपेक्ष किया है , जो सटीक एवं उचित है । स्वतंत्रता के 44 वर्ष बाद हमें यह नई बात मालूम हुई है। पूज्य आचार्य श्री ने कहा कि सत्य बोलना धर्म है , चोरी न करना धर्म है , हिंसा न करना धर्म है , क्या भारतीय संविधान हमें धर्म से निरपेक्ष रहने और असत्य भाषण चोरी करने, हिंसा करने की छूट देता है ? यह विचारणीय प्रश्न है। भारत सम्प्रदाय निरपेक्ष राष्ट्र है। संगोष्ठी के प्रथम सत्र में श्री अक्षयकुमार जैन अध्यक्ष थे और डॉ. दयानन्द भार्गव तथा डॉ, प्रेम सुमन जैन , उदयपुर के शोध-पत्रों के वाचन एवं भाषण अत्यन्त ज्ञानवर्धक रहे । प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy