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________________ ; अन्य समस्त अन्य समस्त प्राकृत भाषाओं की मूलप्रकृति है, उनकी जननी है प्राकृतों ने इसी से अपना स्वरूप निर्माण किया है। वस्तुतः शौरसेनी प्राकृतभाषा में निबद्ध साहित्य में भारतीय संस्कृति, दर्शन कला इतिहास एवं ज्ञान - विज्ञान के अनेकों अज्ञात रहस्य छिपे हुये हैं, जिनका ज्ञान शौरसेनी प्राकृतभाषा एवं उसके साहित्य के विशद् अध्ययन अनुसन्धान एवं प्रचार- प्रसार के बिना नितान्त असम्भव है । प्रो० नथमल टांटिया ने प्राकृत भाषा के स्वरूप एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शौरसेनी प्राकृत ही प्राचीनकाल में सामान्यतः प्राकृत संज्ञा से व्यवहृत होती थी । न केवल नाट्य - साहित्य अपितु प्राचीन आगम - साहित्य की भाषा भी शौरसेनी प्राकृत ही थी । कन्नड़ ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों की प्रशिक्षण कार्यशाला कुन्दकुन्द भारती के द्वारा कन्नड़ ताड़पत्रीय प्रतिलिपियों के विशेषज्ञ जैन विद्वानों की विरलता को ध्यान में रखते हुए पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज की पावन प्ररेणा एवं आशीर्वाद से कन्नड ताड़पत्रीय पाण्डुलिपियों के अध्ययन एवं पाठ- सम्पादन का एक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला 22 जुलाई 1996 को आयोजित की गयी । इसमें प्रशिक्षण - हेतु देश के मूर्धन्य कन्नड़ ताडपत्रीय प्रतिलिपि - विशेषज्ञ संस्कृत प्राकृत एवं हिन्दी भषा के निष्णात विद्वान् पं. देवकुमार जी शास्त्री मूडबिद्री ( दक्षिण कर्नाटक ) कुन्दकुन्द भारती में पधारे । संस्थान के विद्वान् डॉ. सुदीप जैन ने भी इस कार्य में अपना सक्रिय सहयोग दिया । 127 " पं. फूलचन्द्र शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला श्री गणेशवर्णी दिगम्बर जैन शोध संस्थान नरिया वाराणसी के तत्वाधान में दिनांक 2-3 अक्टूबर 1999 को सिद्धान्ताचार्य पं. फूलचन्द्र शास्त्री स्मृति चतुर्थ व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया । इस अवसर पर मद्रास एवं मैसूर विश्वविद्यालय के प्राकृत एवं जैनविद्या विभाग के पूर्व अध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो. एम. डी. वसन्तराज ने गुरूपरम्परा से प्राप्त जैनागम नामक विषय पर तीन व्याख्यान प्रस्तुत किये, जिनमें से एक की अध्यक्षता पार्श्वनाथ विद्यापीठ के निदेशक प्रो. भागचन्द्र जैन भास्कर ने की । 42 Jain Education International · " 7 प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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