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________________ एवं विद्वान लुप्त होते जा रहे हैं । अतः यह सम्मेलन प्रस्ताव करता है कि भारतीय संविधान में परिगणित भाषाओं की अनुसूची में प्राकृत को भी परिगणित कर सम्मिलित किया जाय और शिक्षण , अनुसंधान , पुरस्कार आदि की वे सभी सुविधायें प्राकृत को भी प्रदान की जायें , जो अन्य भारतीय भाषाओं को प्रदान की जा रही हैं । 3 :-यह सम्मेलन भारत सरकार से यह भी अनुरोध करता है कि प्राकृतभाषा एवं साहित्य के अभ्युत्थान एवं संवर्द्धन के लिए वह पाँच करोड़ रूपये वार्षिक स्वतन्त्र मद का प्रावधान शिक्षा विभाग के सहायता मद में किया जाये । ___4 :-सम्मेलन यह भी प्रस्ताव करता है कि प्रतिवर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति महोदय की ओर से बीस हजार रूपये वार्षिक मानदेय के साथ दिये जाने वाले ' सम्मान- प्रमाण पत्र प्राकृतभाषा और साहित्य के पाँच उच्चकोटि के विद्वानों को भी प्रतिवर्ष प्रदान किये जायें । प. फूलचन्द शास्त्री स्मृति व्याख्यानमाला - सितम्बर 1-3 1995 को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के निकट नरिया स्थित श्री गणेश वर्णी दिगम्बर जैन शोध संस्थान के तत्वाधान में आयोजित उक्त व्याख्यानमाला का उद्घाटन पद्मभूषण पं. बलदेव उपाध्याय ने किया और प्रो. उदयचन्द जैन द्वारा अनुदित ग्रन्थ स्वयंभूस्तोत्र का विमोचन भी किया । भीण्डर ( राजस्थान ) के पं. जवाहरलाल सिद्धान्तशास्त्री ने जैन सिद्धान्त के विभिन्न विषयों पर तीन व्याख्यान प्रस्तुत किये । आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला दिसम्बर 15 और 16 फरवरी 1996 को श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ (मानित विश्वविद्यालय ) में आचार्य श्री विद्यानन्द जी महाराज के सान्निध्य में द्वितीय आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया , जिसमें जैनदर्शन के अन्तर्राष्ट्रिय विद्वान् भाषाशास्त्री प्रो. नथमल टाटिया ने दो सत्रों में भारतीय भाषाशास्त्र एवं शौरसेनी प्राकृत और शौरसेनी प्राकृत एवं संस्कृत में पारस्परिक संबंध शीर्षकों से दो शोधपत्रों का क्रमशः वाचन किया । समारोह के दोनो सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः डॉ. प्रेम सिंह ( अध्यक्ष भाषा विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय ) एवं डॉ विमल प्रकाश जैन (जबलपुर विश्वविद्यालय ) ने की । मुख्य अतिथि के रूप में साहू रमेशचन्द्र जी जैन पधारे। इस अवसर पर आचार्य श्री विद्यानन्द जी मुनिराज ने कहा कि शौरसेनी प्राकृत प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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