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________________ द्वितीय राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन (1993) हैदराबाद में द्वितीय राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन 15 16 एवं 17 जून. 1993 को सम्पन्न हुआ । प्रसिद्ध भाषाविद् प्रोफेसर जगदीश चन्द्र जैन (बम्बई) ने प्राकृत साहित्य के अनुसन्धान की नई दिशाओं पर और उसके सांस्कृतिक मूल्यांकन पर अपने अध्यक्षीय भाषण विशेष प्रकाश डाला । डॉ. भागचन्द्र भास्कर ने अपना स्वागत भाषण दिया तथा सम्मेलन के कार्यकारी निदेशक डॉ. प्रेम सुमन जैन ने सम्मेलन के प्रतिपाद्य विषय को स्पष्ट करते हुए विज्ञान और संस्कृति के विभिन्न आयाम प्राकृत साहित्य में उद्घाटित करने की बात भी कही । सम्मेलन में देश के ख्याति प्राप्त 60 प्राकृत विद्वान शिक्षाविद् पत्रकार वैज्ञानिक समाज-शास्त्री एवं शोध छात्र सम्मिलित हुए । विद्वानों ने शोध-पत्र प्रस्तुत किए । विद्वानों की ओर से सम्मेलन की संस्तुतियाँ प्रोफेसर हम्पा नागराजैया ने प्रस्तुत कीं जिनमें (1) नेशनल प्राकृत अकादमी की स्थापना, (2) राष्ट्रीय स्तर पर प्राकृत विद्वानों का सम्मान ( 3 ) वृहत प्राकृत व्याकरण ग्रन्थ का निर्माण (4) प्राकृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवाद कार्य तथा (5) प्राकृत पाण्डुलिपियों की " 38 · सुरक्षा व्यवस्था आदि प्रमुख हैं । प्राकृत ज्ञानभारती एजुकेशन ट्रस्ट द्वारा- प्राकृत ज्ञानभारती, अवार्ड 93 प्राच्य विद्या के जाने माने इन पाँच मनीषियों को प्रदान किये गये : -- " Jain Education International " 1. प्रो. डॉ. एम. ए. घटगे पूना ( प्राकृत व्याकरण और शब्दकोष के लिये ), 2. प्रो. एल. सी. जैन. जबलपुर - ( प्राकृत के वैज्ञानिक अध्ययन के लिये ), 3. प्रो एम. ए. ढाकी, वाराणसी - ( प्राकृत परम्परा की कला के अध्ययन हेतु ) 4. डॉ. प्रेम सुमन जैन, उदयपुर - ( प्राकृत पत्रकारिता शिक्षा - शोध हेतु ), और 5. श्रीमती डॉ. के. कमला, हैदराबाद (दक्षिण भारतीय भाषाओं और प्राकृत के विशेष अध्ययन के लिए ) । प्रत्येक विद्वान को ग्यारह हजार रूपये, स्मृति-चिन्ह श्रीफल और मानपत्र भेंट किया गया । " " For Private & Personal Use Only · " शाल आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ के जैनदर्शन विभाग के तत्वाधान में दिनांक 23 एवं 24 मार्च 1995 को आयोजित द्विदिवसीय प्रथम आचार्य कुन्दकुन्द स्मृति व्याख्यानमाला के अवसर पर बोलते हुए आचार्य श्री विद्यानन्द जी ने अपने मंगल आशीवर्चन में कहा कि आचार्य कुन्दकुन्द की प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन , www.jainelibrary.org
SR No.003677
Book TitlePrakrit aur Jain Dharm ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherKundkund Bharti Trust
Publication Year2000
Total Pages70
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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