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संगोष्ठी/सम्मेलन/व्यख्यानमाला एवं पुरस्कार आयोजन
प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन (1990)
स्वामी भट्टारक चारूकीर्ति जी , श्रवणबेलगोला की अध्यक्षता में स्थापित प्राकृत ज्ञानभारती एजूकेशन ट्रस्ट , बैंगलोर द्वारा आयोजित प्रथम राष्ट्रीय प्राकृत सम्मेलन 8 एवं 9 दिसम्बर 1990 को बैंगलोर में सम्पन्न हुआ । सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए न्यायमूर्ति इ.एस. वैंकटारमया ने कहा कि प्राकृत को वही स्थान और सम्मान मिलना चाहिए जो देश की अन्य भाषाओं को प्राप्त है। सम्मेलन के अध्यक्ष प्रसिद्ध भाषाविद् डॉ. ए. एम. घाटगे ( पूना ) ने भाषात्मक, साहित्यिक एवं दार्शनिक पक्ष की दृष्टि से प्राकृत अध्ययन को गति देने की प्रेरणा अपने अध्यक्षीय भाषण में दी । इस सम्मेलन में देश-विदेश के लगभग 70 प्राकृत विद्वान, शिक्षक एवं शोधछात्र सम्मिलित हुए । हिन्दी , अंग्रेजी एवं कन्नड़ में शोध-पत्र पढ़े गये एवं सम्मलेन के कार्यकारी निदेशक डॉ. प्रेम सुमन जैन ( उदयपुर ) ने प्राकृत भाषा में भी अपना प्रारम्भिक वक्तव्य दिया ।।
इस सम्मेलन में ट्रस्ट द्वारा स्थापित प्राकृत ज्ञान भारती पुरस्कार 1990 के इन 10 वयोवृद्ध विद्वानों को धर्मस्थल के धर्माधिकारी श्री वीरेन्द्र हेगड़े द्वारा प्रदान किये गये- डॉ. जगदीशचन्द्र , पं. दलसुख भाई मालवणिया , पं. फूलचन्द सिद्धान्तशास्त्री , डॉ. नथमल टाटिया डॉ. राजाराम जैन , डॉ. के. आर. चन्द्रा , डॉ. बी. के. खडबडी , डॉ. एम. डी. बसन्तराज , डॉ. जे. सी. सिकदर एवं डॉ. एच. सी. भायाणी । स्वामी भट्टारक चारूकीर्ति जी ने प्रतिवर्ष प्राकृत ज्ञानभारती पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की तथा सम्मेलन के संयोजक एवं ट्रस्टी डॉ. हम्पा नागराजैया ने बताया कि यह प्राकृत सम्मेलन प्रति दो वर्ष में आयोजित होता रहेगा । सम्मेलन के अवसर पर प्राकृत की प्रकाशित लगभग 1500 पुस्तकों की प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी। ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित (1) प्राकृत साहित्य की भूमिका -डॉ. प्रेम सुमन जैन (2) प्राकृत साहित्य कइविडि –शुभचन्द्र (3) प्राकृत प्रवेशिका (कन्नड़) (4) कुन्दकुन्द प्रशस्ति -(डॉ.) जयचन्द्र कन्नड़ (5) प्राकृतभारती (सम्मेलन स्मारिका ) एवं प्राकृत अध्ययन प्रसार संस्थान उदयपुर द्वारा प्रकाशित (6) प्राकृतविद्या त्रैमासिक पत्रिका का सम्मेलन विशेषांक इन छ: प्रकाशनों का विमोचन भी इस अवसर पर किया गया । सम्मेलन की संतुतियों में नेशनल प्राकृत अकादमी की स्थापना पर विशेष बल दिया गया है।
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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