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अभिनव प्रकाशन 1- प्रो. सागरमलन जैन अभिनन्दन ग्रन्थ 2- श्री भूपेन्द्र नाथ जैन अभिनन्दन ग्रन्थ 3- जैन साधना में तंत्र -डॉ. सागरमल जैन 4- जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय -डॉ. सागरमल जैन 5- हिन्दी जैन साहित्य का बृहद इतिहास भाग 3 डॉ. शीतिकंठ मिश्र 6- पंचाशक प्रकरण ( हिन्दी अनुवाद ) -डॉ. दीनानाथ शर्मा 7- दशाश्रुतस्कन्धनियुक्ति -डॉ. अशोक कुमार सिंह 8- नवतत्व प्रकरण ( अंग्रेजी अनुवाद ) -डॉ. प्रकाश पाण्डेय 9- सिद्धसेनदिवाकर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व -डॉ. श्री प्रकाश पाण्डेय 10- वसुदेवहिन्डी : एक समीक्षात्मक अध्ययन -डॉ. कमल जैन 11- पंचाध्यायी में प्रतिपादित जैन दर्शन - डॉ. मनोरमा जैन
इसके अतिरिक्त इस अवसर पर एक भव्य स्मारिका का भी प्रकाशन किया गया , जिसमें विगत 60 वर्षों के विद्यापीठ के विकास इतिहास का लेखा-जोखा , विद्वानों के अभिमत , विद्यापीठ द्वारा तैयार कराये गये शोध प्रबन्धों के सार आदि का विस्तृत विवरण है ।
इन प्रमुख शोध संस्थानों एवं विभागों के अतिरिक्त प्राकृत एवं जैनविद्या के अध्ययन , अनुसंधान , शिक्षण में संलग्न देश में अन्य संस्थान एवं विभाग भी हैं । उनके पूर्ण विवरण उपलब्ध न होने से उनका यहाँ उल्लेख नहीं हो पाया है। जैनालाजी एवं प्राकृत विभाग मैसूर,, जैनालाजी विभाग धारवाड़ , पालि-प्राकृत विभाग अहमदाबाद , पालि- प्राकृत विभाग , नागपुर , जैन अध्ययन केन्द्र , जयपुर , प्राकृत और जैनागम विभाग वाराणसी , जैनदर्शन विभाग वाराणसी , जैनदर्शन विभाग , नई दिल्ली , संस्कृत-प्राकृत विभाग आरा , वीरसेवा मंदिर नई दिल्ली , भारतीय ज्ञानपीठ ,नई दिल्ली , प्राकृत जैनविद्या विकास फण्ड , अहमदाबाद , गणेश्प प्रसाद वर्णी संस्थान , वाराणसी , प्राकृत परीक्षा बोर्ड , पाथर्डी ( अहमदनगर ), सन्मतितीर्थ , पूना आदि विभागों और संस्थानों का भी प्राकृत और जैनविद्या के विकास में महत्ती भूमिका रही है । इनके प्रकाशनों का भी विशेष महत्व है।
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प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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