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mostly lectures , researchers, graduates and post- graduates. The enrolment in the schools from 1989 to 1999 has been more than 180 for the Elementary Course and 80 for the Advanced Course . The Institute has a rich collection of more than ten thousand manuscripts and granthas, mostly in Prakrit. These have been acquired from various Bhandaras including those brought over from Pakistan.
An Annual award of Rs. 51,000 named after Acharya Hemachandra Suri, 11 th century Prakrit grammarian, to be presented to a scholar of Jainology has been insituted with a generous donation from Jaswanta Dharmarth Trust. Awards are given for outstanding services to Art, Culture , Literature and History of Jainology. The first award for the year 1995 was given to Professor H. C. Bhayani. The award for 1996 went to Professor M A Dhaky.
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान , वाराणसी
पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, जैनविद्या के उच्चानुशीलन एवं शोधकेन्द्र के रूप में देश का प्रथम एवं प्रतिष्ठित संस्थान है । यह सुविख्यात काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है । भगवान् पार्श्वनाथ की जन्मस्थली पवित्र नगरी वाराणसी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप स्थित यह शोध संस्थान ज्ञान-साधना का अनुपम केन्द्र है । जैन धर्म , दर्शन , साहित्य इतिहास और संस्कृति के सम्बन्ध में शोधात्मक प्रवृत्तियाँ यहाँ पर संचालित होती
जैनविद्या के शोध , अध्ययन एवं प्रकाशन के क्षेत्र में पिछले छह दशकों से संलग्न पार्श्वनाथ विद्यापीठ की हीरक जयन्ती के अवसर पर विद्यापीठ के पूर्व निदेशक प्रो. सागरमल जैन एवं मंत्री श्री भूपेन्द्रनाथ जैन के अभिनन्दन , विद्यापीठ के नवीन प्रकाशनों का विमोचन , जैन अध्ययन : समीक्षा एवं सम्भावनायें विषय पर त्रिदिवसीय ( 5-7 अप्रैल 1998 ) राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा विद्यापीठ के सभी शोध छात्रों के पुनर्मिलन आदि कार्यक्रमों का भव्य आयोजन किया गया ।
प्राकृत और जैनधर्म का अध्ययन
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