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________________ १- अध्यात्म खण्ड पूर्वोक्त वैकल्पिक जगतको भाँति एक दूसरेको घेरकर स्थित आठ भूमियें या परिधियें हैं। प्रत्येक भीतर भीतर वाली भूमि अपनेसे बाहर बाहर वाली भूमि की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म तथा रहस्यमयी है। जितनी सूक्ष्म है उतना ही अधिकं विस्तार अपने गर्भ में लिए हुए है । इन सबके भीतर मध्य में एक कमलासनपर मेरे उपास्य चेतन महाप्रभु विराजित हैं । कमलासनपर स्थित होते हुए भी कमलपर पड़े जलबिन्दुकी भाँति उसको स्पर्श न करके, वे उससे चार अंगुल ऊपर अधर आकाश में स्थित हैं । यह आध्यात्मिक जगतकी अन्तस्तम गुहामें स्थित वह स्थान है, जहाँ कि साधनाकी चार वीथियोंका या चार मार्गों का संगम होता है - श्रद्धाप्रधान भक्तिमार्गका, विवेकप्रधान ज्ञानमार्गका, चारित्रप्रधान कर्ममार्गका और तपः प्रधान सन्यास मार्गका । इसे में अपनी भाषामें हृदय कहता हूँ जिसका स्वरूपचित्रण आगे पृथक् अधिकारमें किया जाने वाला है । ४० 1 आओ मेरे साथ मैं तुम्हें उस चैतन्य महाप्रभुके दर्शन कराऊँ । परन्तु सावधान, वहाँ तक पहुँचना सरल नहीं है, आठों भूमिओंका अतिक्रम करना होगा । कहीं भी अटके तो पत्थरके बनकर रह जाओगे । ये आठों भूमियाँ वास्तवमें वह चालनी या फिल्टर है जिसमेंसे सारा कूड़ा कचरा छन जाता है। रह जाता है केवल वह जिसकी प्रज्ञा किसी भी भूमिमें भ्रान्त नहीं हो पाती, इधर-उधर देखे बिना जो इन चारोंमेंसे किसी भी एक वीथिके मार्गसे बराबर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता चला जाता है । अनेकों प्रवेश करते हैं चैतन्य महाप्रभुके इस समवशरण में, किन्तु कोई बिरला महाभाग ही अन्तिम भूमिमें पहुँचकर उनकी अमृतमयी दिव्य वाणीका पान कर पाता है । कोई पहली भूमिमें अटक जाता है और कोई दूसरी तीसरी आदिमें । चैतन्य महाप्रभुके तात्त्विक समवशरणकी ये आठ भूमियें हैं - इन्द्रियभूमि, प्राणभूमि, मनोभूमि, बुद्धिभूमि, चित्तभूमि, वासना भूमि, अहंकार-भूमि और हृदय - भूमि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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