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________________ ७-भ्रान्ति दर्शन १. समवशरण चित्तके स्वरूप का विस्तृत परिचय दे दिया गया है, और साथ-साथ अनन्त वीचिमालियोंसे युक्त उसके वैकल्पिक जगतका भी; द्विधा विभक्त अहंकी तथा इदंकी क्षुद्रताका भी और इन दोनोंकी पूर्णता, समग्रता, एकता तथा अखण्डताका भी। अब में आपको इस वैकल्पिक जगतके भीतर स्थित किसी ऐसी तात्त्विक व्यवस्थाका दर्शन कराना चाहता हूँ जिसका उल्लेख यद्यपि शास्त्रों में निबद्ध है तदपि जिसका स्वरूप अत्यन्त गहन तथा सूक्ष्म है। शास्त्रमें अर्हन्त भगवान्के समवशरणका लम्बा चौड़ा विस्तार आपने पढ़ा है, मैं चैतन्य महाप्रभुके समवशरणके रूपमें यहाँ उसका तात्त्विक स्वरूप चित्रित करता हूँ। यद्यपि 'शान्ति पथ प्रदर्शन के नये संस्करणमें इसे निबद्ध कर दिया गया है, परन्तु कर्म-विधामका । प्रधान अंग होनेसे यहाँ उसका उल्लेख अत्यन्त आवश्यक है। ___आइये मेरे साथ, परन्तु आनेसे पहले अपनी इन चर्म चक्षुओंपर थोड़ी देरके लिए पट्टी बाँध लीजिये, अन्यथा मेरा सर्व कथन आपको अटपटासा लगेगा। केवल आभ्यन्तर दृष्टिसे ही इसका दर्शन किया जाना सम्भव है। यहां भी असंख्यात परिधियों वाले .- ३९ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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