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________________ १-अध्यात्म खण्ड इसी प्रकार किसी भी विषयके प्राप्त होनेपर आपके चित्तमें सदा ही कुछ न कुछ करने कराने विषयक अथवा उसे रोकने विषयक एक आद्य स्फुरणा जाग्रत होती है। इस आद्य स्फुरणाका नाम 'संकल्प' है। इस संकल्पको केन्द्रमें स्थापित करके अवान्तर क्षणसे ही अनेकों विकल्प जागृत होने प्रारम्भ हो जाते हैं। ये सभी विकल्प 'संकल्प' नामक उस केन्द्र-बिन्दुकी परिक्रमा करते हुये बराबर विस्तारको प्राप्त होते जाते हैं। कहाँसे प्रारम्भ होकर कहाँ पहुँच जायें, इसका कोई नियम नहीं।. अर्थसे अर्थान्तर अथवा विषयसे विषयान्तर होते हुए ये कहींके कहीं पहुँच जाते हैं। जैसे कि ऊपरवाले उदाहरणमें 'इसको चार आने देकर टालूं' यह है आपके चित्तमें उत्पन्न होनेवाली संकल्प नामक प्रथम स्फुरणा । इसको केन्द्रमें स्थापित करके अवान्तर क्षणमें 'इन लोगोंका सुधार होना चाहिये' यह द्वितीय स्फुरणा है । संकल्पके पश्चात् यह उसकी परिक्रमा करनेवाला प्रथम विकल्प है। इसकी परिक्रमा करते हुए अवान्तर क्षणमें ही एक दूसरा विकल्प उत्पन्न होता है कि, 'भारतमें ही भीख माँगनेकी प्रथा है, अन्य देशोंमें नहीं'। इस द्वितीय विकल्प की परिक्रमा करते हुए अवान्तर क्षणमें ही एक तृतीय विकल्प उत्पन्न होता है कि, 'इसका कारण है भारतकी निर्धनता' । इसकी परिक्रमा करते हुए तुरन्त ही एक चौथा विकल्प आता है, "भारतको निर्धन बनानेवाले ये विदेशी ही तो हैं'। इसकी 'परिक्रमा करते हुए तुरन्त ही पंचम विकल्प आता है, 'भारतमें विदेशियोंका प्रवेग सर्वप्रथम सिकन्दरसे प्रारम्भ हुआ। इसकी परिक्रमा करते हुए तुरन्त ही छठा विकल्प आता है, विश्वका द्वितीय महायुद्ध भी उसीकी एक कड़ी थी'। तुरत एक सातवाँ विकल्प आता है, 'आज तृतीय महायुद्धकी तैयारी हो रही है' इत्यादि। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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