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________________ ३१. पंच-लब्धि १. विशिष्ट पुण्य कल्याणके मार्गमें उपादेय जिस पुण्यानुबन्धी पुण्यका उल्लेख पूर्व अधिकारमें किया गया है, उसका सैद्धान्तिक स्वरूप शास्त्रों में पंच-लब्धिके नामसे प्रसिद्ध है। पंच-लब्धिके प्रकरण में पचाप सामान्य रूपसे जीवकी तत्त्वोन्मुखी पांच प्रधान उपलब्धियोंका विवेचन निबद्ध है, तदपि सूक्ष्म दृष्टिसे देखनेपर इन पांच बातोंमें समस्त आचार शास्त्र और विशेषतः गृहस्थाचार गभित है । यद्यपि मोक्षमार्ग सम्यग्दर्शनसे प्रारम्भ होता है जिसके बिना ज्ञान चारित्र संयम तप आदि सब मिथ्या कहे गए हैं, तदपि सम्यग्दर्शनकी उत्पत्ति भी किसी विशिष्ट जातिके पुण्यका फल है, यही बात पंचलब्धिके प्रकरणमें जोर देकर कही गयी है। ग्रन्थके अन्तमें पुण्यके विषयपर जो मैं इतना बल दे रहा हूँ, इसमें मेरा कोई पक्षपात निहित नहीं है। 'आप सबका कल्याण हो, आप ऊपर उठे' इतना मात्र प्रयोजन है। संस्कारवश जगत्में अनेक प्रकारको भ्रान्तियां प्रचलित हैं, जिनका उल्लेख पहले किया जा चुका है। ऊपर उठनेका संकल्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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