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________________ २८-संस्कार १६३ जिस प्रकार कि टांकी छेनी आदिकी सहायतासे कुयेंकी मेड़ार पड़ा खड्डा अथवा पाषाणकी शिलापर पड़ा रस्सीका निशान मिटाया जा सकता है उसी प्रकार किसी अनुकूल चेतन अथवा अचेतन सामग्रोकी सहायतासे चित्तगत संस्कार भी मिटाया अथवा बदला अवश्य जा सकता है। शान्तिपथ-प्रदर्शन में इसकी वैज्ञानिक विधिका निर्देश किया गया है किसी एक व्यक्तिको प्रत्येक बातमें गालो देकर बोलनेकी आदत है, परन्तु उसे स्वयं यह पता नहीं चलता कि कब उसके मुखसे वह शब्द निकल गया। उसके एक मित्रने उसका लक्ष्य इस ओर दिलाया जिससे उसे कुछ लज्जा आई और अपने मित्रसे प्रार्थना की कि इसी प्रकार मुझे याद दिलाया करो, अन्यथा मैं इसे छोड़ नहीं सकंगा। उसके पश्चात् जब कभी भी उसके मखसे वह शब्द निकलता तभी मित्र उसका लक्ष्य उधर ले जाता। मित्रके द्वारा लक्षित करानेपर प्रत्येक बार अपनी गलतीको स्वीकार करता और साथ-साथ कुछ पश्चात्ताप भी करता। धीरे-धीरे मित्रके याद दिलाये बिना ही उसका लक्ष्य उधर जाने लगा। बाहरवाला मित्र तो कभी उसके साथ होता था और कभी नहीं भी होता था, परन्तु भीतर वाला यह मित्र तो हर समय उसके साथ है। फलस्वरूप उसका जो लक्ष्य अबतक मुखसे शब्द निकलनेके पश्चात् उस ओर जाता था, अब शब्द निकलने के समय ही जाने लगा। आधा शब्द निकल गया और आधा मुख में ही रहा तभी रोक लिया जाने लगा। धीरे-धीरे मुख से निकलनेके पहले मनमें ही वह रुकने लगा, और कुछ कालके पश्चात् उसका मनमें आना भी बन्द हो गया। ___ संस्कारको तोड़नेके पथपर यह सिद्धान्त सर्वत्र लागू किया जा सकता है। इसके अन्तर्गत पांच सोपान ध्यान देने योग्य हैं-१.. कर्मकी स्वीकृति-पूर्वक उसे छोड़नेका संकल्प, २. गुरुके द्वारा लक्ष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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