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________________ १६२ २- कर्म खण्ड वह समर्थ नहीं है । जिस प्रकार अनेक क्षणिक पाकों के संघात से उत्पन्न आधा घण्टेवाला भात का स्थल पाक हमारी प्रतीति का विषय बन जाता है, जिसप्रकार अनेक सूक्ष्म परमाणुओं के संघातसे उत्पन्न स्थूल स्कन्ध हमारी प्रतीतिका विषय बन जाता है, उसी प्रकार एक ही कार्यको पुनः पुनः करनेके कारण उत्पन्न जो अनेकों क्षणिक प्रभाव, उन सबके पारस्परिक संयोगसे उत्पन्न स्थूल प्रभाव हमारी प्रतीतिका विषय बन जाता है। कार्य या कर्मका यह स्थूल प्रभाव ही आदत या संस्कार शब्द का वाच्य है | जिसप्रकार प्रतीतिमें आनेवाला स्थूल-स्कन्ध, पृथक्-पृथक् अनेक परमाणुओंके समूहके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं, अथवा जिस प्रकार आध घण्टेके पश्चात् प्रतीतिमें आनेवाला भातका पूर्ण पाक पृथक्-पृथक् अनेक पाकोंके समूहके अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं, इसी प्रकार एक लम्बे कालके पश्चात् प्रतीतिमें आनेवाला संस्कार भी विभिन्न कालोंमें कृत कर्मोंके, पृथक् पृथक् अनेक प्रभावोंके समूह के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं । तहाँ प्रत्येक समय में प्राप्त कर्मके सूक्ष्म प्रभावको हम आस्रव कह सकते हैं और संस्कार या आदत के रूपमें अनेक प्रभावोंका घनीभूत हो जाना बन्ध-तत्त्व है । किसी एक ही कार्यको निरन्तर अथवा कुछ-कुछ अन्तरालसे पुनः पुनः दोहराते रहना उसका 'अभ्यास' कहलाता है । संस्कारनिर्माण में अथवा कर्म - बन्धमें इसका प्रधान स्थान है । इसीके कारण कर्मगत अत्यन्त क्षीण आद्य प्रभाव प्रत्येक बारमें उत्तरोत्तर गहरा होता हुआ ऐसे दृढ़ संस्कारके रूपमें रूपान्तरित हो जाता है कि पुनः पुनः घड़ा टिकानेसे कुयेंकी मेड़पर पड़े खड्डेकी भांति, मिटानेपर भी उसका मिटना कठिन हो जाता है । ४. संस्कार विच्छेद-क्रम परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि वह सर्वथा मिट न सके । यद्यपि उसका मिटना कठिन पड़ता है, परन्तु असम्भव नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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