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२२-कर्म-विधान
१२७ किसीके शरीर अवश्य रह चुके हैं। जैसे कि काष्ठ, कड़ी, फर्नीचर आदि सब वनस्पति कायके मृतक शरीर हैं, और महल, मकान, मशीनें, आभूषण, बर्तन, पेट्रोल आदि सब पृथिवी कायके मृत शरीर हैं।
इस प्रकार पंचभौतिक नामसे प्रसिद्ध जितने कुछ भी पदार्थ हमारे व्यवहार-पथमें आ रहे हैं वे सब इस जीवित शरीरकी भांति ही शरीर हैं। ज्ञानेन्द्रियोंके द्वारा ग्रहण होनेपर ही उनके संयोग तथा वियोगके लिये हमारी सकल प्रवृत्तियां प्रारम्भ होती हैं, इसलिये ये हमारी प्रवृत्तियोंके कारण हैं, और प्रवृत्तियोंके कारण होने से कर्म हैं। परन्तु कर्म होते हुए भी संस्कारोंका संग्रह करनेमें असमर्थ होनेसे 'नोकर्म' अथवा किंचित् कर्म कहलाते हैं।
[* पंचेन्द्रियों के निग्रह से और कोध, मान, माया, ।।
लोभ, राग द्वेष, मोह आदि पर विजय प्राप्त करने से जीव समस्त तिमिर को हरण करने वाले लोक, अलोक को प्रकाशित करने वाले । केवलज्ञान और केवल दर्शन को उपलब्ध होता ।
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