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________________ १९ - योग - उपयोग १. चेतना शक्तिका उपयुक्तिकरण ज्ञातृत्व, कर्तृत्व और भोक्तृत्व ऐसे त्रिविध कर्मकी बात कही यी । संकल्प पूर्वक होनेसे ये सब कर्म कृतक कहलाते हैं। पांच ज्ञानकरण, पांच कर्मकरण और चार अन्तष्करण इन चौदह करणोंकी अपेक्षा यद्यपि वह चौदह भागों में विभाजित करके दर्शाया गया है, तदपि इन सबकी पृष्ठभूमि में विराजित चेतना नामकी प्रसिद्ध शक्ति जो अपने संकल्पके द्वारा इन सबको अपने-अपने कार्योंके प्रति नियोजित करती है, वह चौदह प्रकारकी न होकर एक है । जिस करणके प्रति यह शक्ति उपयुक्त होती है वह करण ही काम करता है, उसके अतिरिक्त अन्य सब उस समय निश्चेष्ट रहते हैं । यद्यपि स्थूल दृष्टिसे देखनेपर सभी करण युगपत् काम करते प्रतीत होते हैं परन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं है । चपला अर्थात् बिजलकी भांति शीघ्रताके साथ चौदह करणोंमें उपयुक्त होती रहनेके कारण यह एक ही शक्ति चौदह रूप हुई दिखती है । वास्तव में एक समय में वह एक ही करणके प्रति उपयुक्त होती है और एक ही करण उस समय काम करता है, सब नहीं । - १०१ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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