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१०.
२-क्रम खण्ड करने तथा भोगनेकी धुन में लगे इनको उनकी बात या तो सुनाई नहीं देती, और यदि कदाचित् सुनाई भी देती है तो वह इन्हें भाती नहीं है। कदाचित् काल-लब्धिवश किसी एक व्यक्तिके चित्तको उनकी बात स्पर्श कर जाए तो वह चिन्तामें पड़ जाता है, उसके विकल्पों की दिशा बदलकर नीचेसे उपरकी ओर हो जाती है। चित्तके बदल जानेपर मन बदल जाता है, मन बदल जानेपर अहंकार और अहंकार बदल जानेपर बुद्धि भी बदल जाती है। उनके बदल जानेपर उनके परीक्षण निरीक्षण तथा आज्ञाकरणकी सकल गतिविधियां बदल जाती है। फलस्वरूप ज्ञानकरण तथा कर्मकरणकी सकल वृत्तियां बाहरसे हटकर अन्तर्मुख हो जाती हैं। बाह्य-जगत्के विषयोंको जानने करने तथा भोगनेकी बजाय अब वे अन्तर्जगत्में स्थित तत्त्वोंको जानने, प्राप्त करने, तथा भोगनेके प्रति उन्मुख हो जाती हैं। ___ अन्तष्करणके बहिर्मुख होनेपर ही ज्ञातृत्व, कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व बन्धनकारी हैं, उसके अन्तर्मुख हो जाने पर नहीं। .
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