SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 117
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०२ २-कर्म खण्ड __इस विषयमें हम टार्चका दृष्टान्त दे सकते हैं। टार्च में जो बल्ब लगा होता है उसे यदि टार्चसे निकालकर कमरेमें खुला लटका दिया जाये तो उसके प्रकाशमें कमरेकी सारी वस्तुयें दिखाई दे सकती हैं। परन्तु टार्चके द्वारा उसके प्रकाशको किसी एक वस्तुपर फोकस कर देने पर केवल वही वस्तु दिखाई देती है, अन्य नहीं। इसीप्रकार यदि इस चेतना शक्तिको चौदह करणोंकी परिधिसे बाहर निकालकर खुले आकाशमें स्थापित कर दिया जाये तो यह समग्र विश्वको युगपत् प्रकाशित कर देनेके लिये, ग्रहणकर लेनेके लिए अथवा आत्मसात् करके भोग लेनेके लिए समर्थ है। परन्तु संकल्प स्थानीय टार्चके द्वारा इसे किसी एक विषयके प्रति उपयुक्त कर देने पर केवल वही एक विषय जाना या किया जाता है, अन्य नहीं। करणोंके प्रति चेतना-शक्तिका यह उपयुक्तिकरण दो प्रकारका माना गया है-कर्तृत्व पक्षमें योगके रूपमें और ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्व पक्षमें उपयोगके रूपमें । कर्तृत्वमें जिस प्रकार हलन-डुलन रूप क्रिया प्रधान होती है उस प्रकारसे ज्ञातृत्वमें नहीं होती। इन्द्रियोंके द्वारा गृहीत विषयोंकी प्रतीति ही इस पक्षमें प्रधान है। इसलिये इन दोनों पक्षोंमें जातिभेद प्रत्यक्ष है । ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्व पक्षमें इस प्रकारका कोई जाति-भेद नहीं है। जिस प्रकार ज्ञातृत्व पक्षमें विषयकी प्रतीति प्रधान है कर्तृत्व नहीं, उसी प्रकार भोक्तृत्व पक्षमें भी किसी विषयको आत्मसात् करके तज्जनित हर्ष विषादकी अथवा सुख दुःखकी प्रतीति ही प्रधान होती है कर्तृत्व नहीं। २. चेतनाका एकत्व ___ इसका तात्पर्य यह है कि चेतना शक्ति दो न होकर एक है। ऐसा नहीं है कि ज्ञातृत्व तथा भोक्तृत्व पक्षमें विषयोंकी तथा सुख-दुःखकी प्रतीति करनेवाली चेतना तो कोई अन्य हो और करने-धरने वाली चेतना कोई अन्य हो। एक ही चेतना दो काम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy