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________________ २- कर्म खण्ड किया गया काम ज्ञातृत्व है, 'मैं यह काम कर इस प्रकार के संकल्पसे किया गया काम कर्तृत्व है और 'मैं यह भोगू' ऐसे संकल्पसे किया गया काम भोक्तृत्व है। तीनोंके अनेकों अवान्तर भेद हैं। इन्द्रियों के द्वारा देख-सुनकर जानना, अथवा सूंघ चखकर जानना, मन वुद्धि आदिके द्वारा मनन चिन्तन करके जानना अथवा निर्णय करना, समझना, ये सब काम ज्ञातृत्वके अन्तर्गत हैं। हाथ-पांव आदिसे उठाना-धरना, बनाना-बिगाड़ना, चलना-फिरना, उछलनाकूदना, बैठना-लेटना अथवा वचनके द्वारा बोलना पढ़ाना समझाना, ये सब काम कर्तृत्वके अन्तर्गत हैं । ज्ञातृत्वमें केवल जानना होता है, हिलना डुलना.या भागना-दौड़ना नहीं, जबकि कर्तृत्वमें हिलना डुलता या भागना-दौड़ना होता है, जानना नहीं। जाने गये अथवा किये गये किसी विषयके साथ तन्मय होकर उसमें रस लेना, दुःख-सुख महसूस करना अथवा जानते तथा करते समय हर्ष-विषादका अनुभव करना भोक्तृत्व कहलाता है। तन्मय होकर आसक्ति-पूर्वक किसी रूपको निहारना, स्वादिष्ट पदार्थोके साथ तन्मय होकर उनका रस लेना, स्त्री आदिका स्पर्श करना. अथवा मनमें इन विषयोंका स्मरण-चिन्तन करना, ये सब भोक्तृत्वमें गर्भित हैं। इसी प्रकार अपने द्वारा बनाये गये या अपने लिये बनवाये गये घर, फ़ीचर, बर्तन, आभूषण, उपकरण, आदिमें ये मेरे हैं' ऐसा स्वामित्व भाव करना भोक्तृत्व है। इसी प्रकार देखो मैंने यह काम कितना अच्छा किया है', 'मैंने यह कविता कितनी सुन्दर वनाई है', 'मैंने यह पुस्तक कितने म की लिखी है', 'मैं कितना तेज़ दौड़ सकता हूँ', 'मेरा भाषण कितना सुन्दर होता है', 'मैं कितना अच्छा गा-वजा सकता है', इत्यादि प्रकारसे शरीरके तथा वचनके द्वारा किये गये सकल कार्यों में गर्व की प्रतीति करना भोक्तृत्व है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003676
Book TitleKarm Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendra Varni Granthmala
Publication Year1993
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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