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१७-कर्म
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जिस प्रकार इन सकल विषयोंमें हर्ष अथवा सुखकी प्रतीति होती है, उसी प्रकार इनसे विपरीत अनिष्ट विषयों में विषाद अथवा दुःखकी प्रतीति होती है। इष्ट विषयोंमें हर्ष तथा सुखकी और अनिष्ट विषयोंमें विषाद अथवा दुःख की प्रतीति होना भोक्तृत्व है। जिस प्रकार वर्तमान प्राप्त इष्टानिष्ट विषयोंको भोगते समय हर्षविषाद अथवा सुख दुःखकी प्रतीति होती है उसी प्रकार गतकालमें भोग लिए गए इष्टानिष्ट विषयोंका स्मरण करनेमें भी हर्ष विषादकी अथवा सुख-दुःखकी प्रतीति होती है, और 'आगामी कालमें प्राप्त होने सम्भव हैं ऐसी इष्टानिष्ट भावी सम्भावनाको कल्पनामें भी होती है। इसप्रकार इष्टानिष्ट विषयों से सम्बन्धित वर्तमानका एत्यक्ष, भूतका स्मरण और भविष्यत्की कल्पना करनेमें जी हर्षवषादकी अथवा सुख-दुःखकी प्रतीति होती है वह सब भोक्तृत्व कहलाता है।
संकल्प पूर्वक किए जानेसे ज्ञातृत्व, कर्तृत्व तथा भोक्तृत्व ये सकल कार्य या कर्म कृतक कहलाते हैं, और इस कारण ये ही बन्धनकारी होते हैं, सहज होनेके कारण अकृतक कर्म नहीं। ..
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