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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ६३ ॥ देवीगया सहाणं, मुणिवि अन्नब विहरिना ॥१॥ अह तब निवसहाए,थूनकएसेय निस्कु निस्कूणं ॥जा न महंविवाउ, बम्मासेजाव नयबिन्नो ॥ २२ ॥ संघे ण त जणियं, कोजितु मलं विवाय मेयंतु ॥ हुँ मदुरा खमगो, तब मोजत्ति आहून ॥२३॥ तेण त वेणा कंपिय, हियया पत्ता कुबेरदत्ताह ॥ किंते करे मि कचं, स जण तं कध मादश्मा ॥२४॥ किंतुह असंज इए, विज्ञपिंहमएनए पनयण जायं ॥ तो अ लुतावा साद, से मिला कुक्कडं दे ॥ २५॥ साना इखवग पुंगव, सेय पमागाइ दसणा थूने ॥ गोसे त हा जश्स्सं,जह जिण श्मे नियय संघो ॥ २६ ॥ यदेवयाइ वयणं, सो खवगो कहे। संघस्स ॥ संघो वि गंतु साहर, एवं रन्नो जह नरिंद ॥ २७ ॥ जश्व म एस थूनो, तोश्ह होही पनाए सियपडागा ॥ यह निस्कूणं तत्तो, रत्ताश्य सुणिय नरनाहो ॥२॥ तथूनंरस्कावर, समंतन नियनरेंहिं अहदेवी ॥ पवय पनत्तापयडर, धूने गोसेसियपडागं ॥ तं पि सविसबरिय, अणन हरिसोनिको पुरी लो ॥ नरिक '5 कलयररवं, कुएमाणो नण वयणमिणं ॥३०॥ जयन जए महकालं, एसो जिणनाहदेसि धम्मो ॥
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