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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
चिया कम्मा ॥ थायरिय नमुक्कारेण, विका मंताय सिति ॥ १० ॥ इति हेतोर्द्वादश निरधिकारैश्चैत्यवं दनानाष्ये || पढमहिगारे वंदे, नाव जिणे वी एनदव जिसे || २ || इगचेश्य ग्वणजिणे, तश्य चमि नाम जिले ४ ॥ १ तिदुखणठवण जिणे पुल, पंचम ए विहरमा जिउठे ६ | सत्तमए सुनाएं, 9 अहम सवसिद्ध थुइ || २ || तिवादिव वीर थुई, नवमे ९ दशमे अ नजयंत थुइ १० अहावया गदसि ११ सुविधि सुरसमरणाचरिमे १२ ॥ ३ ॥ नमु १ जे २ अरिहं, ३ लोग ४ सङ्घ ५ पुरक ६ तम 9 सिद्ध जोदेवा ॥ उऊिं १० चत्ता ११ वेया, वञ्चग १२ अहिगार पढमपया ॥ ४ ॥ इति गाथोक्तैर्दै ववंदनं वि धाय चतुरादिदमाश्रमणैः श्रीगुरुन् वंदते ॥
यह सुसमिद, सुखदेवीए करेइ उस्सगं ॥ चिंते नमुक्कारं, सुई व देश्व तीइ खुई ॥ ५२ ॥ ए वं खितसुरीए, उस्सग्गं कुणइ सुणइ देइ थुई ॥ ॥ पढिनं च पंचमंगल, मुव विसर पमकसंमासं ॥ ५३ ॥ अर्थः-यावश्यकके यारंजमें बारां अधिकार पर्य त चैत्यवंदना करनी अर्थात् चार थुइसें चैत्यवंदना करनी कही है, तथा यही ग्रंथमें श्रुतदेवता और
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