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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
त् । ततः एषां स्तुतिं जपित्वा प्रागुक्तवस्तवं च ॥ प्रतिक्रमणविधिश्व योगशास्त्रवृत्त्यंतर्गतान्यः चिरंतना चार्यप्रणीताच्या गाथान्योऽवसेयः । पंच विहायार विसु, निमिह साहु सावगो वावि ॥ पडिक्कमणं स ह गुरुणा, गुरुविरहे कुइ इक्को वि ॥ १ ॥ वंदितु चेश्याई, दानं चनराइए खमासमणे || नूमिनिदिश्र सिरो सलाइयार मिठोक्कडं देई || २ || सामाश्य पुव मिला, म गइनं कानसग्गमिचाइ || सुत्तं नलि अ परंवित्र्य, नूयकुप्पर धरि पहिरन ॥ ३ ॥ घोडगमाई दोसेहिं विरहियंतो करेइ उस्सगं ॥ नाहि हो जाएगूढं, चनरंगुलवश्य कडिपट्टो ॥ ४ ॥ naraरे दिए, जक्कमं दिलकए श्रईयारे ॥ पारे तु मोक्कारे, एा पड चनवोसथयं दमं ॥ ५ ॥ संमास गे पमति, नवविसि लगा वित्र्यबाहुजु ॥ मुहणं तगं च कायं च पेहए पंचवीस हा ॥ ६ ॥ नविय सिवियं, विहिया गुरुणो करेइ किश्कम्मं ॥ बत्तीस दोसर दियं, पणवी सावस्सग विसुधं ॥ ७ ॥ श्रह संमम वायंगो, करजु विधिरि पुत्तिरयहरणो ॥ परिचिंतईयार, जदक्कम्मं गुरुपुरोविडे ॥ ८ ॥ हनव विसित्तु सुतं, सामाइय माझ्यं पदिय पय ॥
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