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३.६
चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
यमेंजी यह चोशठमी गाथाका पाठ है | पडिक्कम से चेहरे, जोय समयंमि तहय संवरणे ॥ पडिक्कम ण सूयण पडिवो ह, कालियंसत्तहा जश्णो ॥ ६४ ॥ यह चौशमी गाथाका अर्थ उपर वत् जानना ॥ २ ॥ इसीतरेका पाठ प्रतिक्रमणेकी यादि में चारखुइसें चैत्य वंदन करणेका ३ धर्म संग्रह, ४ वृंदारुवृत्ति, ५ श्रा5 विधि, ६ अर्थ दीपिका, ७ विधिप्रपा, खरतर बृ हत्समाचारी, ए पूर्वाचार्यकृत समाचारी, १० तपग श्री सोमसुंदरसूरिकृत समाचारी, ११ तपगले श्री देवसुंदरसूरिकृत समाचारी, तथा औरजी श्रीकालिका चार्य सूरि संतानीय श्री जावदेवसूरिविरचित यतिदि नचर्यादि ने शास्त्रोंमें पडिक्कमकी याद्यंतमें चा र घुसें चैत्यवंदना करनी कही है. यह ग्रंथोकों न लंघन करके रत्न विजयजी अरु घनविजयजी जो प डिक्कमकी आद्यंतमें चार थुइकी चैत्यवंदना निषेध करते है, और तीन थुकी चैत्यवंदना करनेका उप देश देतें है. यह इनका मत जैनमतके शास्त्रोंसे श्र र पूर्वाचार्यो की समाचारीयोंसे विरुद्ध है. इसके वा स्ते जैनधर्मी पुरुषोंकों इनकी श्रद्धा न माननी चाहि यें. कदाचित् पूर्वकालमें अजाण परोसें माननेमें या
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