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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ई होवे तो, वो तीन करण अरु तीन योगसें वोसरा वणी चाहीयें, क्योंके ? एकतो जैनशास्त्र विरोधी, दूस रा पूर्वाचार्योंकी समाचारियोंका विरोधी, तीसरा च तुर्विध श्रीसंघका विरोधी यह विरोध करणेवाला क दापि संसार समुश्सें न तरेंगा ॥
पूर्वाचार्योंका विरोधी इसी तरें होता है, के एक श्री हरिनइसरि १४ ४ ४ ग्रंथोके कर्ता, दूसरा श्रीनेमिचं सूरि प्रवचनसारोदार ग्रंथका कत्तों, तीसरा श्रीसिह सेनसूरि प्रवचनसारोवारको टीकाका कर्ता, चौथा श्री बप्पजट सरियामराजाको प्रतिबोध करणे वाला.ति नोने चौवीश तीर्थकरोंकी एकेक शुश्के साथ तीनती नथु दूसरी करी है. तिसमें एक सर्व जिनोकी, एक श्रुतझानकी अरु एक शासनदेवताकी इसीतरें दानवे ए६ थुइ करी है, जिनका जन्म विक्रम संवत् ७०२ की सालमें हुआ है. तथा दूसरा श्रीजिनेश्वर सूरिका शिष्य और नवांगी वृत्तिकार श्रीअजयदेव सूरिका गु रुनाइ तिसने शोनन स्तुतिमें चोवीश जिनके संबंधसें चौवीश चोकडे बानवे युद्ध करी है इस्से श्रीयनयदेव सूरिजी नवांगी वृत्तिकारक और तिनके गुरु श्रीजिने श्वर सूरि प्रमुख गुरुपरंपरायसें सर्व चार थुइ मानतेथे.
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