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२२ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ही है, असा कथन करके नोले लोकोंसें प्रतिक्रम णके आयंतकी चैत्यवंदनामें चोथी थुइ बोडावते फिरते है. तो हमारा अभिप्रायेके जाने विनाहि लो कोंके आगें जूना हमारा अभिप्राय जाहेर करना यह काम क्या सत्पुरुषोंको करणा योग्य है ? जे कर आप दोनोकों परनव बिगडनेका जय होवेगा, तब इस कल्पनाष्यकी गाथाकों आलंबके प्रतिक्रमण की आद्यंत चैत्यवंदनामें चौथी थुश्का कदापि निषे ध न करेंगे, अन्यथा इनकी श्वा. हमतो जैसा शा स्त्रोमें लिखा है, तैसा पूर्वाचार्योंके वचन सत्यार्थ जानके यथार्थ सुना देते है, जो नवनीरु होवेगा, तो अवश्य मान्य लेवेगा ॥ इति कल्पनाष्य गाथा निर्णयः ॥ __जेकर कोई कहेगें श्रीहरिनासूरिजीने पंचाशक जीमें तीनही प्रकारकी चैत्यवंदना कही है, परंतु न वप्रकारकी नही कही है, इस वास्ते हम नव नेद नही मानेंगे. तिनकी अज्ञता दूर करणेकू कहते है।
नाष्यं ॥ ए एसिंनेयाणं, उवलरकणमेव वनि या तिविदा ॥ हरिनद सूरिणा विदु, वंदण पंचास ए एवं ॥६५॥ एवकारेण जहन्ना, दमय थुइ जुथ
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