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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। २१ यंच श्रीकल्पनाष्ये गाथा॥ निस्सकड मनिस्सकडे,चे ए सबहिं थुई तिन्नि ॥ वेलंच चेश्याणिय, नाउ इक्किक्कि या वावि ॥१॥ व्याख्याः-एक निश्राकत उसकों कहते हैं के जो गलके प्रतिबंधसे बना है,जैसा के ? यह हमारे गलका मंदिर है, दूसरा अनिश्राकृत सो जिस उपर किसी गलका प्रतिबंध नही है, इन सर्व जिनमंदिरोमें तीन थुइ पढनी जेकर सर्व मंदिरोमें तीन तीन थुइ पढतां बहुत काल लगता जाने अरु जिनमंदिरजी बहोत होवे तदा एक एक जिनमंदिर में एकेक थुइ पढे, इस मुजब यह कल्पनाष्यगाथामें निःकेवल चैत्यपरिपाटीमें तीन धुश्की चैत्यवंदना पूर्वोक्त नव नेदोमेंसें बहे नेदकी करनी कही है. परंतु प्रतिक्रमणके आयंतकी चैत्यवंदना तीन थुइ की करनी किसीनी जैनशास्त्रमें नही कही है. ___ यही कल्पनाष्यकी गाथाका लेख हमारे रचे दुए जैनतत्त्वादर्श पुस्तकमें है, तिस लेखका यही नपर लिखादा अभिप्राय है, तो फेर रत्नविजयजी अरु धनविजयजी जैनशास्त्रका और हमारा अनि प्राय जाने विना लोकोंके आगे कहते फिरते हैं के, वात्मारामजिनेनी जैनतत्त्वादर्शमें तीनही पुश्क
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