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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ५३ ल मनिमा नेया ॥ संपुन्ना नक्कोसा, विहिणा खलु वंदणा तिविदा ॥६६॥ एवकारेण जहन्ना, जह नयजहानिया इमाखाया ॥ दमय एगथुश्ए, विनेया मनमनमिया ॥६७ ॥ संपुन्ना नक्कोसा, नकोसु कोसिया इमा सि॥ उवलरकणंखु एयं, दोसह दोपह सजाईए ॥ ६७ ॥ इनका अर्थ कहते हैं।
अर्थः-श्न पूर्वोक्त नव नेदोंके उपलक्षण रूप तीन नेद चैत्यवंदनाके, वंदना पंचाशकमें श्रीहरिन सूरिजीनेनी कथन करे है॥६५॥ तिसमें एकतो नमस्कार मात्र करणे करके जघन्य चैत्यवंदना॥१॥ दूसरी एक दंझक अरु एक स्तुति इन दोनोके युग लसे मध्यम चैत्यवंदना जाननी॥ ॥ तीसरी सं पूर्ण नत्कष्टी चैत्यवंदना जाननी॥ ३॥ विधि करके वंदना तीन प्रकारे है ॥ ६६ ॥ नमस्कार मात्र कर के जो जघन्य वंदना कही है। सो जघन्यवंदनाका प्रथम जघन्य जघन्य नेद कहा है॥ १ ॥ और दू सरी जो एक दंझक अरु एक स्तुतिसें मध्यम चैत्य वंदना कही है सो मध्यम मध्यम नामा मध्यम चै त्यवंदनाका दूसरा नेद कहा है ॥२॥ ६७ ॥ सं पुन्ना नक्कोसा यह पानसे संपूर्ण उत्कृष्ट उत्कृष्ट वं
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