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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १४१ हना है की आपनी परनवमें इस्स कदाग्रहसें फुःख प्राप्त होवेगा जैसी नीती ररककर श्रीजिनवचनोंके पर श्रद्दधान ला कर कदायह बोड द्यो, खरा सम जवान हो तो यह एकनवमें अपना मुखसें जो जूग बोल निकल चूका तिसका मिजामिउक्कड सबज नोकें सम्मत देनेसें जो माननंग होनेका कुःख तुमकों लगता है तिसकों सुख रूप समज व्योकि आगे संसा र तरना सुलन हो जावेगा. यह बड़ा फायदा होवे गा. यही बात अपने हैयेमें दृढ करो, अरु यह नव मेंनी मिलामि डुक्कड देनेसें विवेकीजनोकें हृदयमें तो तुम महापुरुषोंकीन्याश् टस जावेगें.क्योंकि जोप्रा यश्चित्त लेकर आपना पापोंकी शुद्धि करता है तिसकों चतुर लोक तो बडे पंमितोसेंनी अधिक गिनते है तो फेर खरा विचार करो तो यह नवमेंनी कुल माननंग नही होता है परंतु महत्त्व पणेकी प्राप्ति होती है. ३ सीतरे सत्य विचार करणे वाले पुरुषोंकों तो सब बात सुलनही होती है. तो फेर बहोत कहा कहना.
तथा सिघराज जयसिंहके राज्य में जिने कुमुदचं इ दिगम्बरकों जीता, तथा जिने तेतीस हजार मिथ्या दृष्टीयोंके घरोको प्रतिबोध किया, तथा जिने चौरा
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