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१५२ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। सी सहस्र श्लोक प्रमाण स्याहादरत्नाकर ग्रंथकी रचना करी, ऐसे सुविहित चक्र चूडामणी श्रीदेव सूरिजी दूया, तिनोका रचेला जीवानुशासननामा प्रकरण है. तिस प्रकरणको टीका श्रीउत्तराध्ययन सूत्रकी वृत्तिके करनेवाले श्रीनेमिचंइसरिजीने करी है फेर उस टीकाकों श्रीजिनदत्तसूरिजीने शोधि है, यह कथन यही पुस्तकके अंतमें ग्रंथकारोंनेही लि खा है यह ग्रंथ अब अपहिलपुर पाटणके नांमागा रमें मोजद है. तिसका पाठ जव्यजीवोको संशयमें पाडनेवालेका कदाग्रह दर करनेकेवास्ते यहां लिख ते है. यह पाठ जो नही मानेगा तिसकों चतुर्विध श्रीसंघने दीर्घ संसारी जान लेना. तथाच तत्पातः॥ तह बंन संति माइण, केइ वारिंति पूयणाश्यं ॥ तत्त जन सिरिहरिन,दसूरिणोणुमयमुत्तं च ॥१॥ व्याख्या ॥ तथेति वादांतरजणनाओं ब्रह्मशांत्यादीनां मकारः पूर्ववत् आदिशब्दादंबिकादिग्रहः केऽप्येके वार यंति पूजनादिकमादिग्रहणालेषतदौचित्यादिग्रहः त त्पूजादिनिषेधकरणं नेति निषेधे यतो यस्मात् श्रीह रिनसरेः सिद्धांतादिवृत्तिकर्तुरनुमतमनीष्टं तत्पूजादि विधानं उक्तं च नणितं च पंचाशके इति गाथार्थः॥
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