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________________ १४० चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। सच्चा हो परंतु वो लोकतो उनकेही वचनके अनुजा चलते है तिस्से फेर वो दध्याही, पुरुषकोंनी मज बुत नाद लग जाता है कि अब मैरी बातही सिम करके लोकोंमें चलानी चाहियें जेकर मैरेकों लोक जी कहेंगेंकी यह खरा तत्त्ववेत्ता, अरु शास्त्रशोधक है, देखो, बडे बडे आचार्योंकी नूलनी यह पुरुषने दि खायदीनी! यह कैसा विज्ञान,शास्त्रज्ञ है! ऐसें असें विकल्प उनके हृदयमें हर हमेस हो रहता है तिस्से जिनवचन उबापन करनेका जय तो उसको रहता ही नहीं है. इसी वास्ते हम श्रावक नाश्योंको सत्य सत्य कहते हैं कि अपने जैनमतमें बहोत पंथ प्रच लित हो गया है तो अब कोअपना नाम ररकनेकें लीये नवीन पंथ निकालनेका उपदेश करे तो आप नही सुनोगे अरु कोइ विकारी जनोके कथनसें पूर्वा चार्योंके कहे कथनोको तोड फोड करनेकी कुयुक्ति यों करके जूठ हरू नही करोगे तो, अब अपने जैन मतमें कोइजी नवीन तिखल करे जिस्से ढुंढकोंकी तरे बद्तजनो उर्गतिका अधिकारी हो जावे जैसा उराग्रही फितुर होनेका जय मिट जावेगा.अरु जूठ कथन उपदेशक विकारी जनोकोंजी हमारा यह क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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