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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १३९ सो सब जैसेही कदाग्रही जिनोसें निकला है जिस्में याज सेकडा मत प्रचलित हो रहा है क्योंकि किस विकारी पुरुषने जो अपने माहापण चतुराई बता नेके वास्ते सौ पचास आदमीकी सजा में बात नि कालीकि यह अमुक बात इसीरीतीसें चलनी चाहि यें जैसा शास्त्रों देखनेसें मालुम होता है इसीतरेकी कोई बात उनके मुख मेंसें निकली गई तो फेर उस बातकों सिम करनेके वास्ते उक्त पुरुषके मनमें ह जारों कुयुक्तियों उत्पन्न होती है पीछे उसकों कुब स त्यासत्य नाषण करनेका जानही रहता नही है. न नकों यहही विकार अपने हृदयमें जरपूर हो रहेता हैकि किसीतरेजी मेरा वचन सत्य करके सिम करना चाही परंतु कुयुक्ति करनेसें मेरा जनम बिगड जा वेगा ऐसा विचार उनकों किंचित् मात्रनी आता नही है, वो अपना कथन सत्य करनेका हरु कनी बोडता नही. ऐसीही उनकी प्रकृति हो जाती है ऐसा होनेसेंही दिगम्बर और ढूढीयें प्रमुख बहुत मनकल्पित मतों प्रचिलत हो गया है. कितनेक लो कनी ऐसेही होताहैकि जिसके बचन पर उनको विसवास बैठ गया तो फेर वो चाहो जूना हो चाहो
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