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चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
जेकर तुम कहोगेकी जोले श्रावकोंकों पूर्वोक्त दे वतायोंका तप करना, और पूजन करना कहा है, परंतु तत्त्ववेत्ता श्रावककों तो नही कहा है.
तिसका उत्तरः- हे नव्य यहां तत्त्ववेत्तायोंकोंनी पूर्वोक्त देवताओंका तपादि करना निषेध नही करा है. किंतु इस लोकके अर्थ न करना, परंतु मोदके वास्ते करे तो निषेध नहीं. ऐसा कथन है. जेकर या वश्यक बंदितुं सूत्र ॥ सम्मद्दिष्ठी देवा, दिंतु समाहिं च बोहिं च ॥ इस पाठकी चर्चा हम उपर लिख या ए है. यह पाठ तो तत्त्ववेत्ता श्रावककोंनी प्रायें नित्य पठने में खाता है. इस वास्ते धर्मकृत्यों में विघ्न दूर क रनेकों, पूर्वोक्त देवतायोंका तप, पूजन, कायोत्सर्ग रु थुइ कहनी जानकार श्रावकों को करनी चाहियें यह सिद्ध दूया.
तथा जोले श्रावकोंकोंनी पूर्वोक्त देवतायोंका तप करना, पूजन करना, यहनी मोह मार्गही कहा है इस वास्ते धर्मानिरुची जनोंकों किसी अज्ञ जनके जूठे बचन सुनकर हाग्रही होना न चाहियें, क्यों कि यह हूं अवसर्पिणी कालमें पूर्वैन। जो खाज यह जैनमतमें बहोत बहोत मत दिखने में खाता है
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