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तब हम सब देखोंके श्रावकोंकों अरु विहार करणे वाजें साधुयोंकों जानने वास्ते ये ग्रंथकों बपवाय कर प्रसिद्ध करेगें तब पूर्वोक्त रत्नविजयजी के हिता र्थक सूचनानी येही ग्रंथके प्रस्तावनामें लिख दे वेंगें, जिस्सें रत्नविजयजीनी यह बातकूं जानकर अपक्षपाति होके यापही अपनी मूलका पश्चात्ताप करके शुद्ध गुरुके पास चारित्र उपसंपत् जेके अपना जो अवश्यकार्य करनेका है. सो कर लेवेंगे, तिस्सें इनके पर महाराज साहेबकाजी बडा उपकार होवेगा, क्योंके पूर्वाचार्योंकी चली हूइ समाचारीका निषेध क रके नवीन पंथ निकालनेंसें कितनेक अल्प समज वाले जीवोंका चित्त व्युदग्राहित हो जोता है यरु नवीन नवीन प्रवर्त्ति देखनेसें कितनेक जीवोंकी श्र शनी नष्ट हो जाती है तिस्सें वो जीव धर्मकरणी कर एका उद्यमही बोड देता है, इसीतरें श्री वीतरागके मार्ग में बडा उपव करनेका उद्यम बोड देवेगें जिस्सें इनोकों बहोत लान होवेगा. यरु जैनमार्गका शुद्ध निर्दोष प्रवृत्ति चलनेसें शासनकानी वा प्रजाव दिखेंगा, ऐसा हमारा अभिप्राय था सो प्रस्ताव नामें लिखके पूरण करा.
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