SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 158
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - - १३६ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। विशेष अन्य ग्रंथकार आचार्योने तिन तिन नाना प्र कारके ग्रंथोमें इत्यर्थः॥ __ हां वादी प्रश्न करता हैकि यह तुमारा तप वां बासहित होनेसें मुक्तिका मार्गमें नही होता है. इसका उत्तर कहतेहैं. यह पूर्वोक्त वांबा सहित त प जो है सो मोद मार्गकी प्राप्ति होनेमें कारण है, जो मोदमार्गकी प्रतिपत्तिका हेतु है. सो मोद मार्ग ही नपचारसें है. पूर्वपदः-यहपूर्वोक्त तपसें कैसें मोद मार्ग हो शक्ताहै? ' उत्तरः-शिक्षणीय जीवके अनुरूप होने करके दो शक्ता है. क्योंकि कितनेक शिष्य प्रथम वांबासहित अनुष्ठानमें प्रवृत्त हुए होए “ निरनिष्वंग” अ र्थात् वांबारहित अनुष्ठानकों प्राप्त होते है. इति गा थाध्यार्थः ॥ __ अब नव्यजीवोंकों विचारना चाहिये कि जब श्रा वक श्राविकायोंकों रोहिणी अंबिका प्रमुख देवीयोंका तप करणा और तिनकी मूर्तियोंकी पूजा करनी शा स्त्रमें कही है. और तिनके आराधनके वास्ते तप क रणा कहा है, अरु सो तप उपचारसे मोक्का मार्ग कहा है. तो फेर जो कोइ मताग्रही शासनदेवताका का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy