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________________ १३४ चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। जब कसाय इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ जिस तपमें कषायका निरोध होवे, ब्रह्म जिन पूजन होवें, और अशननोजनका त्याग होवे,सो सर्व तप नोले लोकोंमें होता हैं, क्योंकि नोले लोक प्रथम ऐसे तपमें प्रत त्त हुए नये अन्यासके बलसे पीछे कर्मयके करने वास्तेनी तप करनेमें प्रवृत्त होते है. परंतु आदिहीसे कर्मक्ष्य करण वास्ते जोले होनेसें प्रवृत्त नहीं होते है. और जो सद्बुध्विाले है वे तो चाहो पूर्वोक्त कोश्नी तप करे सो सब मोदके वास्तेही करते है, यदाह ॥ उत्तम पुरुषोंकी जो मति है सो मोदार्थ मेंही घटे है, और मोदार्थकी जो घटना है सो आगमके विधि करकेही है. क्योंके बागम सिवाय जो वे आलंबन करते हैं, सो सब अनाजोग हेतुक है ॥ इति गातार्थ ॥ ऐसें न कहना के देवताके उद्देश करके जो तप करणा सो सर्वथा निःफलही है, अथवा इस लोक काही फल है, किंतु चारित्रकानी हेतु है. अब यह तप जैसें चारित्रका हेतु है ? सो दिखाते है ॥ __ एवं पडिवत्ति इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ ऐसें उक्त साधर्मिक देवतायोंका कुशल अनुष्ठानमें निरुप Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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