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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। १३३ अब देवताही दिखाते हुए कहते है ॥ रोहिणी त्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ १ रोहिणी, ५ अंबा, तथा ३ मदपुरियका, ४ सर्वसंपत् ५ सौख्या ॥ सुयसंति सुरत्ति ॥ ६ श्रुतदेवता, पु शांतिदेवता, ७ काली, ए सिहायिका, ए नव देवीयों है इति गाथार्थः॥ ___ एमाइ इत्यादि गाथाकी व्याख्या ॥ इत्यादि देवता कों अश्रित तिनकी आराधनाकेवास्ते अपवसन अपजोषण करना ये नानादेशमें प्रसिद है. ये सर्व तपविशेष होते हैं. तिनमेंसें रोहिणीतप रोहि पीनदत्रके दिनमें उपवास करे, इसतरें सात वर्ष सात मासाधिक तप करे और श्रीवासुपूज्य तीर्थकर जगवंतके प्रतिमाकी प्रतिष्ठा अरु पूजा करे. इति रोहिणी तप ॥ १ ॥
तथा अंबातप॥पांच पंचमीमें एकाशनादि करना, और श्रीनेमिनाथजीकी तथा अंबिकाकी पूजा करें ।
तथा श्रतदेवताका तप ॥ ग्यारे एकादशीयोंमें उपवास मौनव्रत करे और श्रुतदेवताकी पूजा करे, शेषतपविधि रूढीसें जान लेनी ॥ इति गाथार्थः ॥ - अथ किसतरें देवताके नद्देश करके विधीयमान यथोक्त तप होवे, ऐसी आशंका लेकर कहते है.
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