________________
ए४
चतुर्थस्तुति निर्णयः ।
देते है || इति दमक स्तुति युगल होते है ॥ १ ॥ तथा पंच दमक, शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रु तस्तव, सिद्धस्तव, इन पांचों दंमकों करकें. और थु इचार करके स्तवन कहना जयवीयराय इत्यादि प्र विधान करके यह उत्कृष्ट चैत्यवंदना, यह व्याख्यान जी कोइ करते हे तिन्निवा इत्यादि गाथा इस कल्प की गाथा के वचनकों और पणिहाणं मुत्तसुतीए ३ स वचनों याश्रित होके करते है ॥ ३ ॥
वंदनक चूर्णिमें भी कहा है सो कहते है सो चैत्यवंद ना जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट जेदसें तीन प्रकारें है जि स वास्ते कहा है नवकारेण जहन्ना इत्यादि गाथा तिहां नवकार एक श्लोक उच्चारणसें प्रणाम करणे करके जघन्या चैत्यवंदना होती है ॥ १ ॥ तथा य रिहंत चेश्याएं इत्यादि दंमक कहकें कायोत्सर्ग पा रके खुश देते है सो दमक और थुइके युगल दोनु करके मध्यम चैत्यवंदना होती है कल्पमें निस्सकड इत्यादि गाथासें कहा है ॥ २ ॥ तथा शक्रस्तवादि ins पांच, और थुइ चार, और प्रणिधान पाठसें संपूर्ण उत्कृष्ट चैत्यवंदना होती है ॥ ३ ॥
तथा संघाचार वृत्ति में इस गाथाके व्याख्यानमें बृह
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org