________________
चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। ए३ नाषा ॥ चैत्यवंदनाके जघन्यादि तीन नेद है. य भाष्यं ॥ नमुक्कारेण इत्यादि गाथा ॥ इसकी व्याख्या ॥ नमस्कार सोअंजलि बांधि शिर नमावणे रूप ल क्षण प्रणाममात्र करके अथवा नमो अरिहंताणं इत्यादि पाठसे अथवा एक दो श्लोकादि रूप नम स्कार पाठ पूर्वक नमस्क्रिया लक्षण रूप करणनूत करकें जातिके निर्देशसें बहुत नमस्कार करके करते दुए जघन्याजघन्य चैत्यवंदन पाठ क्रियाके अल्प हो नेसें होती है ॥१॥ अरु दूसरा प्रणाम है सो पंच प्रकारें है शिर नमावे तो एकांग प्रणाम दोनो हाथ नमाए यंग प्रणाम, मस्तक अरु दो हाथके नमाव ऐसें व्यंग प्रणाम, दो हाथ अरु दो जानु के नमा वणेसें चतुरंग प्रणाम, शिर, दो हाथ अरु दो जानु यह पांचों अंगके नमावणसें पंचांग प्रणाम होता है ॥ तथा दमक अरिहंत येश्याएं इत्यादि चैत्यस्त वरूप स्तुति प्रसिद है जो तिसके अंतमें देते हैं. ति न दोनुका युगल, ये दोनोही वा युगल यह मध्या चैत्यवंदना है. यह व्याख्यान इस कल्पनाष्यकों था श्रित होके करते है ॥ तद्यथा निस्सकड, इत्यादि गा था जिस वास्ते दमकके अवसानमें एक थुइ जो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org