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चतुर्थस्तुतिनिर्णयः। भाष्यकी सम्मतिसें नवप्रकारकी चैत्यवंदना कही है. तथा च तत्पागोलेशः॥ एतावता तिहाउ वंदणये त्याद्य हार गाथा गत तु शब्दसें सूचित नव प्रकारसें चैत्य वंदना जानने योग्य, दिखलाने योग्यहै। उक्तंच वृह भाष्ये ॥ इसके आगे जो महानायकी गाथा है ति सका अर्थ उपर कहा है तहांसें जान लेना ॥ जब इसतरे जैनमतके शास्त्रोमें प्रगट पाठ है तो क्या र नविजयधन विजयजीने यह शास्त्र नही देखे होवेगेव थवा देखे होवेगे तो क्या समजणमें नही आए होंगे समजे होंगेतोक्या नाष्यकार,चूर्णिकारादिकोंकी बुद्धि से अपनीबुधिकों अधिक मानके तिनके लेखका अना दर करा होगा बादर करा होगा तो क्या सत्य नही माना होगा सत्य नही माना तो क्या अन्यमतकी श्रा वाले है जेकर अन्यमतकी श्रदा नही है तो क्या नास्तिक मतकी श्रधा रखते है. जे कर नास्ति कमतकी श्रध्धा नही रखते है तो क्या मारवाड मा जवादि देशोंके श्रावकोंसें कोइ पूर्व जन्मका वैर ना व है? जिस्से नाष्यकार, चूर्णिकारादि हजारोपूर्वचा योका मतसें विरु६ जो तीन थुश्का कुपंथ चलाके
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