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चतुर्थ स्तुति निर्णयः ।
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रुला पारिए पारिता सम्मत्त सुद्धिहे नवोयं पढिय सवतोय यरदंत चेश्यारायणुस्सग्गं काउं उद्योयं चिंतिय सुयसोहि निमित्तं पुरकरवरदीवटं कट्टिय पुणो पणवीसुस्तासं काउस्सग्गं कार्यं पारिय सिव पढित्ता सुयदेवयाए कानस्सग्गे नमोक्कारं चिं तिय तीसेथु देइ सुइ व एवं खित्तदेवयाएवि कान रसग्गे नमोक्कारं चिंतिक पारिय तत्रुई दानं सोनं वा पंचमंगलं पद्विय संमासए पमजिय नवविसिय पुत्रं च पुत्तिं पेहिय वंदणं दानं वामो श्रसहिंतिन पियक्कार हितानव ६ मायरकरस्सरा तिन्नि थुईन पढि यसकवयथुतंच जणिय छायरियाई वंदिय पायनि का स्सग्गं काळं नवोयचनकं चिंतिइति
विसोह ॥ देव सियप डिक्कम विही ॥
भाषा ॥ विधिप्रपाग्रंथ में प्रतिक्रमणे कि विधि ऐसा लिखा है. पूर्वे जो सामान्य प्रकारें प्रतिक्रमणेकी स माचारी कही थी. सो यह है के श्रावक अपने गुरुके साथ, अथवा एकला जावंति चेश्याई यह दो गाथा, स्तोत्र, प्रणिधान ये वर्द्धके, शेष शक्रस्तव पर्यंत चार थुइसें चैत्यवंदना करकें, चार क्षमाश्रमणसें, या चार्यादिकोंकों वांदके भूमि उपर मस्तक लगाके, सब
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