SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 108
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८ ६ चतुर्थस्तुति निर्णयः । स्तव देवसिय इत्यादि दंमकसें सकल प्रतिचारोंका मिथ्या दुष्कृत देवे पीछे कठके, सामायिक सूत्र क के, इलाम वं काउस्सग्गं इत्यादि सूत्र पढके, लांबी जुजा करके, नाजीसें चार अंगुल हेग, अरु जानुसें चार अंगुल उंचा, ऐसा चोलपट्टाकों कूहणी योंसें धारण करी, संयंती, कपिचादि दोषरहित, का योत्सर्ग करे. तिसमें यथाक्रमसें दिन करे हुए अ तिचारोंकों अपने हृदयमें धारके, नमस्कारसें पारके, लोगस्स पढके, संमासे पडिलेहके बैठे. बैठके शरी रके विना लागे बाहु युगल करके मुहपत्तिकी पंच वीस अरु शरीरकी पंचवीस पडिलेहणा करे. अरु श्राविका पीठ, हृदय, शिर वर्जके पंदरा पडिलेहणा करे. पीछे कठके, बत्तीस दोष रहित पंचवीस याव श्यक शुद्ध द्वादशावर्त्त वंदला करे. अंग नमावी, दोनो हाथो में विधिसें मुखवस्त्रिका धरी, दिवसके अतिचारोंकों प्रगट करके अर्थे आलोयणा दंमक पढे. तद पीछे मुखवस्त्रिका, कट्यासन, पूणा, वा पडिलेहके, वामा जानुं हेग और दाहिना जानु कं चा करके दोनो हाथों में मुखवस्त्रिका ररकके, सम्यग् प्रतिक्रमणा सूत्र पढे. तद पीछें इव्य नावें कठके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003675
Book TitleChaturthstuti Nirnay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy