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चतुर्थस्तु तिनिर्णयः ।
सुत्तं जलिय पलंबिय नुय कुप्पर धरिय नानि हो कापुढं चनरंगुल वविय कडिपट्टो || सजइ कविताइ दोसर दियं काउस्सगं कार्यं कदक्कमं दिलकए य श्यारे दिए धरिय नमोक्कारेण पारिय चन्वीसबयं प दिय संमासगे पमधिय नवविसिय अलग्गवियय वा दु जुन मुहांतर पंचवीसं पडिलेहणा कार्यं काए वितत्तियान चेव कुणइ साविया पुण पुछि सिर हिययं वयं पन्नरसकुrs || उठियबत्तीस दोसर दियं पणवीसा वस्सय सुद्धं कि कम्मं कार्यं प्रवणयग्गो करज्जुय विहिधरियपुत्ती देव सियाझ्याराणं गुरुपुर वियडवं श्रा लोयणदंमगं पढइ ॥ त पुती एकठासणं पाउ बणं वा पडिजेहिय वा मतापुहिहादाहिणं च उट्ठे कानं करज्जुय गहिय पुत्तीसम्मं पडिकमण सुत्तं न त दवनावुनि मिचाइ दं म पढित्तावदादा पाइसकइ सुतिन्नि खामित्ता ॥ सामन्नसाहूसुपुराहवणायरिएण समं खामणं कार्य त तिन्निसादूखा मित्ता पुणोकी कम्मंकार्ड न-६ हिसि रकयंजनीयरिय वनाए इच्चा इंगाहातिगं पढित्ता ॥ सामाश्य सुत्तं नस्लग्ग दंमयं च जलिय काउस्सग्गे चरित्ताश्यारसुद्धिनिमित्तं उद्योगं चिंतेत गु
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