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ठाणं
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३१. ह्रीसत्त्व और हीमनःसत्त्व- इन दोनों में सत्त्व का अाधार लोक-लाज है । कुछ लोग अान्तरिक सत्त्व के विचलित होने पर भी लज्जावश सत्त्व को बनाए रखते हैं, भय को प्रदर्शित नहीं करते । जो ह्रीसत्त्व होता है, वह लज्जावश शरीर और मन दोनों में भय के लक्षण प्रदर्शित नहीं करता । जो ह्रीमन सत्त्व होता है, वह मन में सत्त्व को बनाए रखता है, किन्तु उसके शरीर में भय के लक्षण—रोमांच, कंपन आदि प्रकट हो जाते हैं।
३२. योगवाहिता-- योगवहन करने वाले मुनि की चर्या को योगवाहिता कहा जाता है । योगवहन का शब्दानुपाती अर्थ है-चित्तसमाधि की विशिष्ट साधना । जैन परम्परा में योगवहन की एक दूसरी पद्धति भी रही है। आगम-श्रुत के अध्ययनकाल में योगवहन किया जाता था। प्रत्येक पागम तपस्यापूर्वक पढ़ा जाता था। आगम के अध्येता मुनि के लिये विशेष प्रकार की चर्या निर्दिष्ट होती थी, जैसे
१. अल्पनिद्रा लेना। २. प्रथम दो प्रहरों में श्रुत और अर्थ का बार-बार अभ्यास करना । ३. अध्येतव्य ग्रंथ को छोड़कर नया ग्रंथ नहीं पढ़ना। ४. पहले जो कुछ सीखा हो उसे नहीं भुलाना । ५. हास्य, विकथा, कलह आदि न करना। ६. धीमे-धीमे शब्दों में बोलना, जोर-जोर से नहीं बोलना। ७. काम, क्रोध आदि का निग्रह करना।
तपस्या की विधि प्रत्येक शास्त्र-ग्रंथ के लिये निश्चित थी। इसकी जानकारी के लिये विधिप्रपा आदि ग्रन्थ द्रष्टव्य हैं ।
- यह योगवहन की पद्धति भगवान् महावीर के समय में प्रचलित नहीं थी। उस समय के उल्लेखों में अंगों के अध्ययन का उल्लेख प्राप्त होता है, किन्तु योगवहन पूर्वक अध्ययन का उल्लेख नहीं मिलता। अध्ययन के साथ योगवहन की परम्परा भगवान् महावीर के निर्वाण के उत्तरकाल में स्थापित हुई प्रतीत होती है। यदि योगवाहिता का अर्थ श्रुत के अध्ययन के साथ की जानेवाली तपस्या या विशिष्टचर्या हो तो यह उत्तरकालीन संक्रमण है। और, यदि इसका अर्थ चित्त-समाधि की विशिष्ट साधना हो तो इसे महावीरकालीन माना जा सकता है। प्रसंग की दृष्टि से दोनों अर्थ संगत हो सकते हैं ।
३३. प्रणिधान-प्रणिधान का अर्थ है--एकाग्रता। वह केवल मानसिक ही नहीं होती, वाचिक और कायिक भी होती है। एकाग्रता का उपयोग सत् और असत् दोनों प्रकार का होता है । इसी आधार पर प्रणिधान के सुप्रणिधान और दुष्प्रणिधानये दो भेद किये गये हैं।
३४. गुप्ति-गुप्ति का अर्थ है--रक्षा। मन, वचन और काय के साथ योग होने पर इसका अर्थ होता है---मन, वचन और काय की अकुशल प्रवृत्तियों में नियोजन ।
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