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ठाण
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६. समुच्चयदृष्टि से विचार करने पर प्रायुष्य के दो रूप फलित होते हैंपूर्ण-पायु और अपूर्ण-प्रायु । देव और नैरयिक—ये दोनों पूर्ण-प्रायु वाले होते हैं । मनुष्य
और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपूर्ण-पायु वाले भी होते हैं। इनमें असंख्येय वर्ष की आयुष्य वाले तिर्यंच और मनुष्य तथा उत्तम पुरुष और चरम शरीरी मनुष्य पूर्ण-पायु वाले ही होते हैं।
१०. षट्प्राभूत में प्रायुः क्षय के कई कारण माने हैं-१. विष का सेवन, २, वेदना, ३. रक्तक्षय, ४. भय, ५. शस्त्र, ६. भूत, पिशाच आदि से ग्रस्त, ७. संक्लेश, ८. आहार का निरोध, ६. श्वापोच्छवास का निरोव । इनके अतिरिक्त—१. हिमअत्यधिक ठंड, २. अग्नि, ३. जल, ४. ऊँचे पर्वत से गिरना, ५. ऊँचे वृक्ष से गिरना, ६. रसों या विधाओं का अविधिपूर्वक सेवन । ये भी अपमृत्यु के कारण होते हैं ।
११. प्रस्तुत सूत्र में मोह के तीन प्रकार निर्दिष्ट हैं—ज्ञानमोह, दशनमोह, चारित्रमोह।
वृत्तिकार ने ज्ञानमोह का अर्थ ज्ञानावरण का उदय और दर्शनमोह का अर्थ सम्यग्दर्शन का मोहोदय किया है। दोनों स्थलों में बोधि और बुद्ध के निरूपण के पश्चात् मोह और मूड़ का निरूपण है । इससे प्रतीत होता है कि मोह बोधि का प्रतिपक्ष है । यहाँ मोह का अर्थ प्रावरण नहीं, किन्तु दोष है ।
___ ज्ञानमोह होने पर मनुष्य का ज्ञान अयथार्थ हो जाता है। दृष्टिमोह होने पर उसका दर्शन भ्रान्त हो जाता है। चरित्रमोह होने पर प्राचार मूढ़ता उत्पन्न हो जाती है। चेतना में मोह या मूढ़ता उत्पन्न करने का कार्य ज्ञानावरण नहीं, किन्तु मोह कर्म करता है।
१२. प्रस्तुत सूत्र में रोगोत्पत्ति के नौ कारण बतलाए हैं। उनमें से कुछएक की व्याख्या इस प्रकार है
अच्चासणयाए–वृत्तिकार ने इसके दो अर्थ किये हैं-१. अत्यासन सेनिरन्तर बैठे रहने से । इससे मसे प्रादि रोग उत्पन्न होते हैं। २. अत्यशन से—अति भोजन करने से । इससे अजीर्ण हो जाने के कारण अनेक रोग उत्पन्न हो सकते है ।
अहियासणयाए-वृत्तिकार ने इसके तीन अर्थ किये हैं—१. अहितासन से-- पाषाण आदि अहितकर आसन पर बैठने से अनेक रोग उत्पन्न होते हैं, २. अहित-अशन से-अहितकर भोजन करने से, ३. अध्यसन से—किए हुये भोजन के जीर्ण न होने पर पुनः भोजन करने से-'अजीर्णे भुज्यते यतु तदध्यसनमुच्यते ।'
इन्द्रियार्थ-विकोपन-इसका अर्थ है—कामविकार । कामविकार से उन्माद आदि रोग ही उत्पन्न नहीं होते, किन्तु वह व्यक्ति को मृत्यु के द्वार तक भी पहुंचा देता है । वृत्तिकार ने कामविकार के दस दोषों का क्रमशः उल्लेख किया है-१. काम के
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